Brahmacharya Ko Follow Kaise Kare?
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ब्रह्मचर्य का संकल्प तो आज के समय में अधिकांश युवा करते हैं, लेकिन प्रश्न यह है कि कितने उस संकल्प को निभा पाते हैं। हमें अनेक प्रश्न प्राप्त होते हैं कि हम संकल्प करते हैं, लेकिन जैसे ही एक निश्चित समय अवधि पूरी होती है—चाहे वह दस दिन हो, पंद्रह दिन हो, एक महीना हो, दो महीने हो, या पाँच महीने—तो हमारी मन:स्थिति में फिर से वही विचार, वही चीजें चलनी शुरू हो जाती हैं।
हम ऐसा अनुभव करते हैं जैसे हम इन स्थितियों के दास हैं। यह वास्तविकता है कि जब व्यक्ति मानसिक कैद में होता है, तो वह अपनी आदतों और अपनी लत का गुलाम हो जाता है। उसकी स्थिति ऐसी ही होगी, जैसे एक व्यक्ति जेल में बंद होता है। वह जो भी व्यवहार करता है, उसे चारदीवारी के अंदर करता है।
लेकिन अगर उसके मन में यह इच्छा जागे कि वह इस चारदीवारी से बाहर जाए, तो उसके लिए यह संभव नहीं होता, क्योंकि उसके मार्ग में बहुत सारे अवरोध होते हैं।
अनुशासन ही आधार है
यदि उसे कैद से समय से पहले बाहर जाना है, तो उसके पास एक ही अवसर होता है और वह है अनुशासन। अगर वह अनुशासित रहता है, तो उसकी कैद की सीमा कम कर दी जाती है और वह समय से पहले ही वहां से बाहर आ सकता है।
इसी प्रकार, जो व्यक्ति मानसिक विचारों की स्थितियों का कैदी हो गया है, लतों में फंस गया है, और ब्रह्मचर्य में स्थित नहीं हो पा रहा है, तो उसके जीवन में अनुशासन के बिना यह बात पक्की समझ लें कि इन स्थितियों से उसका बाहर आ पाना असंभव हो जाएगा।
यदि हमारा प्रत्येक नवयुवक इन मानसिक स्थितियों से उबर पाए और इस जाल से बाहर निकल पाए, तो वह मानसिक स्तर पर स्वतंत्र हो सकता है। मानसिक स्वतंत्रता प्राप्त कर लेने के बाद वह अपने जीवन के प्रत्येक पक्ष को नियंत्रित कर सकता है और उसे अपने अनुसार संचालित कर सकता है।
क्यों करना है ब्रह्मचर्य?
दूसरे स्तर पर हमारा उद्देश्य है कि आप अपनी संस्कृति की चीजों को, सिद्धांतों को अपने जीवन में लेकर आएं। अगर ऐसा करते हैं, तो आप निश्चित रूप से इस संकल्पना को पूरा कर सकते हैं। हमने अनुभव किया है कि हमें जो बाधा होती है ब्रह्मचर्य के संकल्प में, वह लगभग बीस दिन और इक्कीस दिन का समय है।
पंद्रह दिन बीस दिन तक तो हम स्थिर रह पाते हैं, लेकिन ये जो दो-तीन दिन आगे के होते हैं, ये बड़े कठिन होते हैं। इसमें हम स्थिर नहीं रह पाते। इसका कारण क्या है? इसे हम समझते हैं कि ऐसा क्यों होता है। इसे आप एक उदाहरण से समझें। जैसे एक किसान होता है, वह किसान जब अपने खेत में पानी चलाता है,
तो उससे पहले वह एक चीज जरूर करता है कि जो मेड होती है, जो घेराव होता है उसके खेत का, उस मेड को वह ठीक प्रकार से जांच लेता है कि वह ठीक तो है, कमजोर तो नहीं है, कहीं से टूटी हुई तो नहीं है। एक बार जांच जरूर कर लेता है। फिर उसके बाद वह खेत में पानी शुरू कर देता है। और जब पानी शुरू हो जाता है, तब भी वह ऐसी लापरवाही नहीं करता कि फिर वह जाकर के देखे ही नहीं। वह बीच में भी जाता है और मेड के चारों ओर चक्कर लगाता रहता है कि कहीं से कोई रिसाव तो नहीं है, कहीं से कोई कटाव तो नहीं है, कहीं पानी बाहर तो नहीं निकल रहा है।
और यह जरूरी है। पहले निरीक्षण करता है, बीच में भी निरीक्षण करता है और जब तक वह यह आश्वस्त नहीं हो जाता इस विषय में कि हां, अब सब जगह ठीक से पानी चल रहा है, बाहर नहीं निकल रहा है, तब तक वह उसकी जांच करता है।
सतत निरीक्षण जरूरी है
इसी प्रकार से प्रत्येक व्यक्ति को भी जरूरी है। जब कोई भी हमारा नवयुवक एक संकल्प करता है, तो उसे यह देखना होगा कि उसके उस संकल्प का आधार क्या है। अगर कोई मोटिवेशन मात्र आधार है या फिर ग्लानि आधार है, या आपने कुछ ऐसा किया और उसके बाद आपको लगा कि यह तो व्यर्थ है, मैं दोबारा ऐसा नहीं करूंगा और आपने कोई विचार नहीं किया, केवल भावनाएं आपके मन में कुछ चल रही हैं, तो बड़ा कठिन हो जाएगा
आपके लिए ब्रह्मचर्य। अगर मोटिवेशन है कि कोई वीडियो आपने देख ली या किसी व्यक्ति ने कहा कि तुम मूर्ख हो, तुम्हारा जीवन नष्ट हो जाएगा, पतन हो जाएगा, तुम कहीं के नहीं रहोगे। फिर तुम मोटिवेट हो गए और आपने ब्रह्मचर्य का संकल्प किया, तो ब्रह्मचर्य का संकल्प दृढ़ नहीं हो पाएगा। अब करना क्या पड़ेगा? तो आपको भी निरीक्षण करना पड़ेगा।
जैसे वह किसान उस क्यारी के चारों ओर घूमके पहले देखता है कि पानी ठीक से चल रहा है कि नहीं, कहीं मेड कमजोर तो नहीं है। इसी प्रकार से आपको भी अपनी स्थितियों को देखना पड़ेगा, अपने जीवन को देखना पड़ेगा। आपको अपना विश्लेषण, मूल्यांकन करना होगा कि मैंने अब तक क्या किया। क्या मेरे जीवन की दिशा ठीक है? मुझे किस प्रकार से इस दिशा को बेहतर बनाना है। और केवल ब्रह्मचर्य का संकल्प ही नहीं लेना, साथ ही साथ अपने जीवन को ऐसी दिशा भी देनी है, जिसमें कि आप अपना लक्ष्य रखते हैं।
कोई व्यवसाय का संकल्प है, कोई आपका लक्ष्य है। जैसे राष्ट्र सेवा है, आध्यात्मिक प्रगति है, योगी प्रगति है। तो कोई भी एक ऐसा विषय जिसमें कि पूर्ण तन्मयता के साथ आप अपने आप को लगा के रखें, ऐसी स्थिति भी होनी चाहिए। जब आप देखते हैं और अपने जीवन का यह आधार बना लेते हैं कि मैं ब्रह्मचर्य का संकल्प इसलिए कर रहा हूं, उसके बाद इसकी बहुत अधिक संभावना है कि आप अब उसी स्थिति में दृढ़ स्थित हो पाएंगे।
दूसरे स्थान पर जब आपने संकल्प कर लिया, तो उसके बाद भी अपने जीवन को देखते रहना है। उसके बाद भी सभी स्थितियों का मूल्यांकन करते रहना है। हमने देखा है कि बस संकल्प कर लिया कि मैं एक वर्ष का संकल्प करता हूं, लेकिन फिर कुछ ही दिनों बाद अनेक लोग यह कहने लग जाते हैं कि हम नहीं कर पाए, हम नहीं कर पाए। तो क्यों नहीं कर पाए? उसका कारण सीधा सा यह है कि आपने एक संकल्प करने के बाद सजगता नहीं रखी।
जीवन की व्यवस्था और उन चीजों का मूल्यांकन नहीं किया कि क्या मेरे जीवन में मेरे रूटीन ठीक हैं? क्या मेरे जीवन का अनुशासन ठीक है? क्या मेरा आहार ठीक है? क्या मेरा दृष्टिकोण, विचार ठीक है? क्या मेरा संगठन ठीक है, जिन लोगों के साथ मैं रहता हूं? अगर इन चीजों पर आपने दृष्टि नहीं डाली, तो बड़ा कठिन हो जाएगा। तो कहने का मतलब है कि आपको संकल्प करने के बाद भी सजग रहना ही होगा। यह हमारा दूसरा बिंदु है।
अपना लक्ष्य निर्धारित करें
और तीसरे स्थान पर महत्वपूर्ण है कि जब एक किसान खेत में पानी ले जा रहा है, तो पानी कब बाहर आना शुरू होता है या मेड कब टूटनी शुरू होती है। जब पानी का स्तर कुछ बढ़ना शुरू हो जाता है, जब मेड के ऊपर दबाव आना शुरू हो जाता है, तभी वह टूट सकती है।
इसी प्रकार से जो आपका यह प्रश्न रहता है कि हम संकल्प करते हैं लेकिन एक सीमा तक जाने के बाद वह संकल्प मजबूत नहीं रहता, हम भ्रमित होने शुरू हो जाते हैं। तो इसका कारण है कि यह एक ऊर्जा है। जब आप ब्रह्मचर्य करते हैं तो यह आपके पास रक्षित होनी, इकट्ठी होनी शुरू हो जाती है और जब इसका आंतरिक दबाव बनता है, तब उसको सहन करना, तब उसको व्यवस्थित रखना, संतुलित रखना यह एक चुनौती का विषय निश्चित रूप से होता है।
तो आपकी जो यह ऊर्जा संग्रहित हो रही है, यह आपको प्रेरित करेगी ही। हमने पहले ही आपको कहा है कि आपको अपने लिए एक अच्छा, सकारात्मक लक्ष्य भी रखना है और पूर्ण उत्साहित रहना है उस लक्ष्य के प्रति। जब आप ऐसा करेंगे तो आपके पास अब कोई एक ऐसा विषय होगा, जिसमें आप इस ब्रह्मचर्य रूपी ऊर्जा का प्रयोग कर सकते हैं।
क्योंकि निष्क्रिय व्यक्ति कभी भी ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकता। हमारे योगी, हमारे ऋषि, हमारे ब्रह्मचारी इसीलिए स्थित रह पाते थे क्योंकि उनके पास सार्थक लक्ष्य और अनुशासन बहुत पक्का होता था। जीवन में अगर अनुशासन है और सही दिशा में उस ऊर्जा का प्रयोग करने की क्षमता है, तो यह ऊर्जा आपके लिए बहुत अच्छे तरीके से, बहुत सर्जनात्मक कार्य कर सकती है।
और अगर दिशा देने का मार्ग नहीं है, तो यह आपके लिए भारी भी बन सकती है, आपके लिए पतन का कारण भी बन सकती है। आप बार-बार भ्रष्ट होते रहेंगे, ग्लानि से भरते रहेंगे। तो आपके पास इसको दिशा देने का माध्यम भी होना चाहिए। इसीलिए हम कई बार आपको योग अभ्यास बताते हैं, कई बार ध्यान के अभ्यास बताते हैं, शांभवी आदि, त्राटक आदि दूसरे अभ्यास बताते हैं।
क्योंकि जब तक आपके पास आपके जीवन में सार्थक चीज नहीं है, तब तक कठिनाई ही रहेगी।
निष्कर्ष
तो, हमने जो ये तीन चीजें आपको बताई हैं:
पहली है संकल्प करने से पहले उस संकल्प का एक आधार बनाना।
दूसरी है, संकल्प करने के बाद भी उस संकल्प का निरंतर निरीक्षण करते रहना, जीवन का निरंतर निरीक्षण करते रहना।
तीसरी बात यह है कि जो हमारे बंधु कहते हैं कि हम बीस दिन, इक्कीस दिन ही चलता है। क्योंकि व्यक्ति को लगने लगता है जैसे पंद्रह दिन होते हैं या सोलह दिन होते हैं, तो उसे लगने लगता है कि अब तो काफी समय हो गया है। अब जैसे ही उसके मन में यह विकल्प बन जाता है कि काफी समय हो गया है, तो यहीं से उसका मन लापरवाही की स्थिति में चला जाता है और संकल्प पक्का नहीं रहता। फिर उसके लिए वे तीन, चार, पाँच दिन आगे बड़े मुश्किल हो जाते हैं और इक्कीस दिन में यह उसके लिए बड़ा भारी हो जाता है इतना निभा पाना।
और वह भ्रष्ट हो जाता है। तो, इसी प्रकार आप इन स्थितियों को समझें। यह भी समझें कि जिस व्यक्ति को मन की सही समझ नहीं है, तो वह जीवन के किसी भी बिंदु पर सफल नहीं हो सकता। मन की समझ होना जरूरी है। जब आप दृढ़ रहेंगे, आप एकाग्र रहेंगे, तभी ठीक प्रकार से सभी अपने संकल्पों को पूरा कर पाएंगे।
इसीलिए, हम बार-बार अपने साथियों को यौगिक मार्ग की एक जो प्रेरणा देते हैं, या फिर जो हमारे अध्यात्म और योग के अंतर्गत गूढ़ मनोविज्ञान के विषय में बातें कही गई हैं, उन्हें आप तक अग्रेषित करते हैं। जिससे कि आप उनसे सीख करके, उनका प्रयोग करके, मन, विचार और वृत्तियों के विषय में समझ रखें और उनसे सचेत रहें, सजग रहें।
।। राधे राधे ।।