भगवत गीता के अध्याय-2 से आप को क्या सीख मिलती है?
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भागवत गीता के दूसरे अध्याय से हमें ये सीख मिलती है कि जिस व्यक्ति न मन और इंद्रियों को जीत लिया उनका ईश्वर को प्राप्त होने का पथ सरल हो जाता है, हमें सिर्फ अपने कर्मों पर और फल ईश्वर पर चोर देना चाहिए| भगवान श्री कृष्ण ये भी समझaते हैं कि आत्मा कभी मरती नहीं सिर्फ एक शरीर से दूसरे शरीर को जाती है |
Jai Shree Krishna
मुझे भगवतगीता के दूसरे अध्याय में बहुत सी चीजें सीखने को मिली।
जिनमें से कुछ निम्लिखित है–
इसमें पहली सीख तो यही मिली कि हमें केवल अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए ।
महत्वपूर्ण सीख यह मिली कि आत्मा अमर है, अजर है, नाशवान है तो केवल शरीर।अतः किसी के मरने जीने पर बुद्धिमान लोग शौक नहीं किया करते ।
अन्य महत्वपूर्ण सीख यह मिली कि हमें हमेशा निष्काम कर्म करना चाहिए। भगवान श्री कृष्ण जी कहते हैं कि मनुष्य को सदैव निष्काम कर्म करना चाहिए।
बिना किसी फल की इच्छा के कर्म को ही निष्काम कर्म कहते हैं।
इसके अलावा स्थितप्रज्ञ कैसे रहते हैं इसका वर्णन भी श्री कृष्ण जी ने विस्तार पूर्वक किया है।
जय श्री कृष्णा 💖💖🚩
श्री मद भगवदगीता के अध्याय–2 से जो मुझे सिख मिली उसका संक्षेप में वर्णन कुछ इस प्रकार से है:
इसमें मैंने पढ़ा की जब युद्ध के लिए अर्जुन ने रथ को बीच में लाने के लिए कहा तब वह यह जानना चाहता था की उसके विरुद्ध, युद्ध लड़ने के लिए कोन कोन आया है। जब उसने वहां अपने गुरु, भाई ,मामा और अन्य सगे संबधियो को देखा तो वह काफी व्याकुल और भावुक हो गया। उसने यह देख युद्ध न करने का निर्णय लिए और श्री कृष्ण से कहा हे मधुसूदन मैं युद्ध नहीं लडूंगा क्योंकि मेरे विरुद्ध लड़ने के लिए मेरे सब प्रिय लोग है जिनसे अगर मैं जीत भी जाऊं तो ऐसी जीत का कोई मायने नहीं होगा इससे बेहतर है की मैं युद्ध न करूं। तब श्री कृष्ण ने कहा की पार्थ जो युद्ध छोड़ के जाए वह कायर कहलाता है और तुम एक क्षत्रिय हो। तुम अगर सुख दुख, हार जीत और फल की इच्छा न करते हुए युद्ध लड़ोगे तो तुम्हे कोई पाप नहीं लगेगा और रही बात मृत्यु की तो आत्मा सदेव अमर है केवल शरीर नष्ट होता है, जिस प्रकार मनुष्य पुराने कपड़े होने के बाद नए कपड़े को बदलता है उसी प्रकार आत्मा भी पुराने शरीर को छोड़ कर नए शरीर में बदलती है। श्री कृष्ण कहते है ही कुंतीपुत्र अगर तुम युद्ध में हार जाओगे तो स्वर्ग को प्राप्त करोगे और जीत जाओगे तो पृथ्वी पर साम्राज्य का भोग करोगे। श्री कृष्ण कहते है जय अथवा पराजय की समस्त आसक्ति को त्याग तुम केवल अपना कर्म करो।
इसमें मुझे सिख मिली
आत्मा अमर है ये कभी नष्ट नहीं होती। होता है तो केवल शरीर।
जय श्री कृष्ण🙏