ब्रह्मचर्य और योग का क्या संबंध है?
श्री राधे, अगर हम अपना अनुभव बताएं, जो हमने जाना है, तो सबसे पहले जब हम ब्रह्मचर्य के लिए थोड़ा सा सजग हुए थे, जब हमको ये एप और कम्युनिटी मिली थी जुलाई में, तब हमने कुछ ब्रह्मचर्य से रिलेटेड पुस्तकों का अध्ययन शुरु किया था, जिसमें एक प्रतीक प्रजापति की बुक थी, और एक थी ब्रह्मचर्य ही जीवन है, लेकिन अगRead more
श्री राधे,
अगर हम अपना अनुभव बताएं, जो हमने जाना है, तो सबसे पहले जब हम ब्रह्मचर्य के लिए थोड़ा सा सजग हुए थे, जब हमको ये एप और कम्युनिटी मिली थी जुलाई में, तब हमने कुछ ब्रह्मचर्य से रिलेटेड पुस्तकों का अध्ययन शुरु किया था, जिसमें एक प्रतीक प्रजापति की बुक थी, और एक थी ब्रह्मचर्य ही जीवन है, लेकिन अगर आपको सही बताएं तो शुरु शुरु में इनमें लिखी बातें आपको हवा हवाई लग सकती हैं।।
इसलिए हमारा तो यही कहना है कि अगर आप शुरुआती फेज में हो, तो ब्रह्मचर्य की पुस्तकें ना पढ़कर आध्यात्मिक पुस्तक पढ़ें। जैसे हमने भी शुरुआत में ये दो ही पढ़ीं थी, लेकिन हमें जमा नहीं, तो हमने श्री ब्रह्म वैवर्त पुराण का अध्ययन शुरु किया, फिर श्री वाल्मीकि रामायण पढ़ी, और फिर श्रीमद भागवत लिखनी शुरु करी, जी हाँ हमने उसे पढ़ा नहीं बल्कि लिखना स्टार्ट किया, क्योंकि पूज्य महाराज जी रोज सुनाते थे और हम उसे रोज टाइप करते थे क्योंकि हम स्वयं को ज्यादा से ज्यादा व्यस्त रखना चाहते थे उस समय।
फिर भागवत जी का प्रभाव हुआ, हमारी अध्यात्म में और रुचि बढ़ने लगी, ब्रह्मचर्य में स्थित रहने लगे, और जब यह स्थिरता आई तब जाकर फिर से ब्रह्मचर्य को समझना शुरु किया, और कार्य निरंतर प्रगति पर है।
अब तो जगह जगह से ब्रह्मचर्य के बारे में और जानने की लालसा बनी रहती है, और जो नई चीज जहाँ से सीखता हूँ वो या तो इस पोर्टल पर जबाव में लिख देता हूँ या फिर pdf बना कर ग्रुप में डाल देता हूँ।
मै जो भी कुछ लिखता हूँ, अपने मन से एक शब्द भी नहीं लिखता हूँ, बस जो कुछ गुरुजनो से, प्रबुद्ध जनों से जाना है, समझा है, लिख देता हूँ।
आशा है आपको इस जबाब से मदद मिली होगी।।
।।राधे राधे।।
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ब्रह्मचर्य और योग का संबंध ब्रह्मचर्य और योग दोनों ही भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक परंपरा के प्रमुख अंग हैं। ये एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं और आत्म-संयम, अनुशासन और आत्मज्ञान के मार्ग को सरल बनाते हैं। ब्रह्मचर्य योग के आठ अंगों (अष्टांग योग) में से एक है, जिसे महर्षि पतंजलि ने अपने योगसूत्रRead more
ब्रह्मचर्य और योग का संबंध
ब्रह्मचर्य और योग दोनों ही भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक परंपरा के प्रमुख अंग हैं। ये एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं और आत्म-संयम, अनुशासन और आत्मज्ञान के मार्ग को सरल बनाते हैं। ब्रह्मचर्य योग के आठ अंगों (अष्टांग योग) में से एक है, जिसे महर्षि पतंजलि ने अपने योगसूत्र में स्पष्ट रूप से वर्णित किया है।
ब्रह्मचर्य का अर्थ केवल यौन संयम नहीं है, बल्कि यह जीवन के सभी क्षेत्रों में अनुशासन, विचारों की पवित्रता और ऊर्जा का संरक्षण है। योग का उद्देश्य भी आत्मा और परमात्मा का मिलन है, और ब्रह्मचर्य इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक होता है।
योग और ब्रह्मचर्य: एक दृष्टिकोण
1. अष्टांग योग में ब्रह्मचर्य का स्थान
महर्षि पतंजलि ने योग को आठ अंगों में विभाजित किया है:
इनमें यम के अंतर्गत ब्रह्मचर्य को प्रमुख बताया गया है। यम वह नैतिक सिद्धांत हैं जो योग के अभ्यास में अनुशासन और नियंत्रण प्रदान करते हैं। ब्रह्मचर्य का पालन करने से मन और शरीर की ऊर्जा संरक्षित रहती है, जो योग साधना में सहायक होती है।
2. ऊर्जा का संरक्षण और दिशा
योग में ऊर्जा को कुंडलिनी शक्ति के रूप में समझा जाता है। ब्रह्मचर्य का पालन करने से यह ऊर्जा व्यर्थ नष्ट नहीं होती और साधक इसे ध्यान और समाधि के माध्यम से उच्चतर स्तर तक ले जा सकता है।
3. शारीरिक और मानसिक शुद्धता
योग का अभ्यास करने के लिए शारीरिक और मानसिक शुद्धता आवश्यक है। ब्रह्मचर्य इस शुद्धता को बनाए रखने का मार्ग है। यह अनावश्यक भोग और विकारों से व्यक्ति को बचाकर योग के प्रति एकाग्रता को बढ़ाता है।
योग और ब्रह्मचर्य के लाभ
1. योगाभ्यास में सफलता
योग के उच्च स्तर (जैसे ध्यान और समाधि) तक पहुंचने के लिए मन का स्थिर और शांत होना आवश्यक है। ब्रह्मचर्य का पालन करने से मन स्थिर रहता है और योगाभ्यास में सफलता मिलती है।
2. शरीर और मन का संतुलन
ब्रह्मचर्य और योग दोनों ही शरीर और मन को संतुलित रखते हैं। ब्रह्मचर्य शरीर में ऊर्जा का संरक्षण करता है, जबकि योग इस ऊर्जा को सही दिशा में उपयोग करने में मदद करता है।
3. ध्यान और आत्मचिंतन में सहायता
ब्रह्मचर्य का पालन करने से ध्यान की एकाग्रता में वृद्धि होती है। यह मन को भटकाव से बचाता है और आत्मचिंतन के मार्ग को सरल बनाता है।
4. कुंडलिनी जागरण में सहायक
योग का एक प्रमुख उद्देश्य कुंडलिनी शक्ति को जागृत करना है। ब्रह्मचर्य का पालन करने से यह ऊर्जा बिना किसी रुकावट के जागृत होती है और साधक को आत्मज्ञान की ओर ले जाती है।
योग और ब्रह्मचर्य का वैज्ञानिक पक्ष
1. शारीरिक ऊर्जा का संरक्षण
आधुनिक विज्ञान मानता है कि संयमित जीवनशैली से शरीर की ऊर्जा और स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखा जा सकता है। ब्रह्मचर्य के पालन से शरीर के हार्मोनल संतुलन को बनाए रखा जा सकता है, जिससे योग अभ्यास अधिक प्रभावी हो जाता है।
2. मस्तिष्क पर प्रभाव
योग और ब्रह्मचर्य दोनों मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। ब्रह्मचर्य के अभ्यास से मन शांत होता है और एकाग्रता में वृद्धि होती है, जो ध्यान और समाधि में सहायक है।
ब्रह्मचर्य और योग का व्यवहारिक अनुप्रयोग
सात्विक आहार, संयमित जीवनशैली और सकारात्मक संगति का पालन करें।
आसन, प्राणायाम और ध्यान के नियमित अभ्यास से ब्रह्मचर्य का पालन आसान हो जाता है।
सकारात्मक सोच और आत्मचिंतन से विचारों को शुद्ध रखें।
भौतिक इच्छाओं और भोग-विलास से बचने के लिए योग का सहारा लें।
धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण
भारतीय ग्रंथों में ब्रह्मचर्य और योग का संबंध गहराई से वर्णित है। भगवद गीता और उपनिषदों में ब्रह्मचर्य को योग का अभिन्न अंग बताया गया है। महात्मा गांधी और अन्य महापुरुषों ने भी ब्रह्मचर्य को जीवन का मूल आधार माना है।
निष्कर्ष
ब्रह्मचर्य और योग एक-दूसरे के पूरक हैं। ब्रह्मचर्य व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आत्मिक ऊर्जा प्रदान करता है, जबकि योग इस ऊर्जा को नियंत्रित और संचालित करने का साधन है। जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य और योग दोनों का पालन करता है, वह जीवन में शांति, संतुलन और आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है। इन दोनों का संयोजन हमें अपने जीवन के उच्च उद्देश्यों की प्राप्ति की ओर ले जाता है।
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