shailendrapedia Contributor
*ब्रह्मचर्य की ऊर्जा*
इसके लिए सबसे पहले हमें यह समझना होगा,कि यह ऊर्जा किन लोगों के पास होती है, क्योंकि कितने ही हमारे भाई हैं जो सोचते हैं कि दस दिन उन्होंने ब्रह्मचर्य का पालन किया, या पंद्रह दिन या फिर एक महीने तक ब्रह्मचर्य का पालन किया और वह सोचते हैं कि विलक्षण प्रभाव हमें दिखाई दे जाए, तो ऐसा नहीं हो सकता है।।
क्योंकि सभी ऐसे विषय जोकि यौगिक और आध्यात्मिक होते हैं उनको तीन अलग अलग भागों में बाँटा जाता है,
तीन कोटि के साधक होते हैं, चाहे वो ब्रह्मचर्य हो,चाहे वो योग मार्ग हो,चाहे भक्ति मार्ग हो, सबमें तीन प्रकार के साधक होते हैं।
सबसे नीचे स्तर के साधक होते हैं, अधो साधक, यह सबसे निचली कोटि के साधक होते हैं, यानी इन्होंने केवल संकल्प लिया है, इनके मन में बस एक प्रेरणा विकसित हुई, और इन्होंने इस मार्ग पर बढ़ना शुरु कर दिया,
इन्होंने प्रयास करना भी शुरु कर दिया है, लेकिन ये जिस मार्ग पर चल रहे हैं, इन्होंने अभी उन साधनों को ही नहीं समझा है, संयम को ही नहीं समझा है,नियमों को ही नहीं समझा है,बस एक संकल्प बना,कहीं से कोई बात सुनी, किसी से प्रेरित हो गये, या अपने जीवन में आने वाले कष्टों से ही प्रेरित हो गये कि नहीं अब बहुत हुआ, अब मुझे ब्रह्मचर्य का पालन करना है, मैने अपनी बहुत क्षति कर ली,इस प्रकार की प्रेरणा आना स्वाभाविक होती है तो ये संकल्प करते हैं, आगे बढ़ते हैं,
लेकिन इन्हें ना नियम पता हैं, ना संयम पता है तो ये हो गये अधो साधक।
ये कैसी स्थिति में होंगे, पंद्रह दिन ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे, बीस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे, ये उन्हें थोड़ा सा सहज लगेगा, क्योंकि अंदर अभी एक मोटिवेशन है, एक प्रेरणा है ,तो इन्होंने पंद्रह बीस दिन पालन किया, इसके बाद जैसे ही कोई चित्र देख लिया या फिर ऐसी कोई वार्ता हो गई, या फिर मित्रों के कुसंग में पड़कर कोई ऐसी प्रेरणा हो गई तो वे फिर उसी मार्ग पर बढ़ चलेंगे जहाँ से संकल्प करके उन्होंने वो मार्ग छोड़ा था।
तो अधो साधक बहुत निम्न स्तर है,जो अभी तक पूर्ववत संस्कारों में जकड़े हुए हैं,अभी आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं, ये कैसे ऊर्जा को संग्रहित करेंगे इनकी ऊर्जा भी ज्यादा विकसित नहीं होती बस एक तरीके से आंतरिक तल पर थोड़ा बल मिलना शुरू होता है लेकिन ये फिर से गलती कर देते हैं।
कितने ही ऐसे लोग होते हैं जो कहते हैं कि हम संकल्प करते हैं एक वर्ष का, दूसरा कहता है हम संकल्प करते हैं दो वर्ष का,कोई कहता है कि हम संकल्प करते हैं विवाह पर्यन्त, कोई गलती नहीं करेंगे, ब्रह्मचर्य रहेंगे, लेकिन कुछ ही दिन बाद दस पाँच दिन बाद वही व्यक्ति कहता है कि मै नहीं रह सका, मैने फिर गलती कर दी, और फिर वो हीनभावना से ग्रसित होता चला जाता है,तो ऐसी जो स्थिति होती है वो होता है अधो साधक।
अब इससे आगे बढ़ते हुए,थोड़े ऊंचे स्तर पर कुछ व्यक्ति चले जाते हैं, अब यह कैसे ऊंचे स्तर पर चले जाते हैं क्योंकि ये केवल संकल्प ही नहीं करते हैं बल्कि यह संकल्प के साथ-साथ यह भी देखते हैं कि, यह मार्ग है क्या?, ब्रह्मचर्य है क्या?
यह जो ब्रह्मचर्य की अवधारणा चारों तरफ फैली हुई है कि बस हस्त मैथुन आदि गलत क्रियाएं नहीं करेंगे तो ब्रह्मचर्य हो जाएगा, ये बस यहाँ पर ही संतुष्ट नहीं होते हैं,ये और गहराई से सोचते हैं,ये सोचते हैं कि अगर स्वयं भगवान इस विषय में बात कर रहे हैं तो ब्रह्मचर्य कुछ गहरी बात होगी, क्योंकि ब्रह्मचर्य अगर सिर्फ शरीर की ही बात होती तो शायद इसको इतना महत्व भगवान ना देते।
ब्रह्मचर्य के विषय में हमारे ऋषियों ने या हमारे जितने भी शास्त्र हैं, उन सब में चाहे कोई भी मार्ग है भक्तियोग हो चाहे हठयोग हो चाहे राजयोग का मार्ग हो,इन सब में सबसे प्राथमिक स्तर पर ब्रह्मचर्य को क्यों रखा गया है, इनके मन में एक प्रश्न उठता है और ये इस बात को ही जानने की तरफ प्रेरित हो जाते हैं, फिर यह चाहे पुस्तकें पढ़ें या चाहे जो कोई भी इस विषय में बात करते हैं, जो भी मार्गदर्शक हैं उनकी बातें सुनें,चाहे यह अपने किसी मित्र जो कि प्रबुद्ध है और इन विषयों को जानता है, उससे जानने की कोशिश करें तो यह प्रयास करते हैं कि हम इस विषय को समझें और जब ये समझते हैं तो इन्हें मार्ग मिलना शुरू हो जाता है, फिर ये उस मार्ग पर धीरे-धीरे बढ़ना शुरू कर देते हैं।
लेकिन क्योंकि पूर्व की वृत्तियां और संस्कार बहुत अधिक प्रबल हैं तो यह प्रयास करते हैं और मन से चाहते भी हैं कि बस अबकी बार गलती ना हो जाए लेकिन फिर से गलती हो जाती है, लेकिन वह गलती का जो समय है ये उसे बहुत लंबे समय तक खींचते हैं,और बहुत लंबे समय तक ये कोशिश करते हैं, यह परमात्मा का नाम भी लेते हैं,यह अपनी वृत्तियों में सुधार भी करते हैं तो इनमें अब एक दिव्यता आनी शुरू हो जाती है, यह दूसरे भोगी लोगों से विलक्षण हो जाते हैं जब यह गलत मार्ग पर बढ़ते हैं तो अब इनका मन अंदर से इन्हें बहुत उचाटता है ये एक स्थिति बनने लगती है कि नहीं नहीं, यह बात ठीक नहीं होगी, यह मार्ग ठीक नहीं होगा, हमारा संकल्प है कुछ इस पर भी दृष्टि डालो इस तरीके के भाव इनके हो जाते हैं।
ये मध्यम कोटि के साधक हैं, अब जो ये मध्यम कोटि के साधक हैं इनमें बल की वृद्धि होगी, बुद्धि की वृद्धि होगी, जीवन में शांति आने लगेगी, संतुलन आने लगेगा इनकी दृष्टि पवित्र होने लगेगी, ये जो मध्यम कोटि के साधक हैं, अगर इन्होंने कहीं कुछ गलत देख लिया या कोई ऐसी प्रेरणा हुई तो उस प्रेरणा से भी ये बच निकलने का प्रयास करेंगे और बच निकलेंगे भी बहुत बार, क्योंकि दृष्टि में पवित्रता आनी शुरू हो गई है इन्हें भटकाना आसान नहीं है, मध्यम कोटि के साधकों का जो ओजस का स्तर है वह भी बढ़ना शुरू हो जाता है और इस वजह से इनका व्यक्तित्व अलग दिखने लगता है, लेकिन जो हमने कहा कि गलती इनसे भी हो जाती है तो ऊर्जा संग्रहित तो होती है लेकिन उसे ठीक प्रकार प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
फिर इससे भी ऊँची कोटि के साधक के जो साधक होते हैं वो होते हैं उत्तम कोटि के साधक, इनमें यही विलक्षणता होती है कि ये उस ऊर्जा को संग्रहित भी करते हैं और उस ऊर्जा को दिशा भी देते हैं,
ये जो उत्तम कोटि के साधक हैं, ये कहीं ना कहीं अध्यात्म और योग के मार्ग पर अग्रसर हो जाते हैं क्योंकि इनको समझ आ जाता है कि इस मार्ग पर आगे बढ़े बिना हम ब्रह्मचर्य में स्थित नहीं हो सकते, क्योंकि मन को तामसिक और राजसिक वृत्तियों में से सात्विक वृत्ति में ले जाना पड़ेगा और कोई भी सांसारिक विषय इतना प्रबल नहीं है कि आपको उस दलदल से निकाल सके, क्योंकि इसके लिए एक विपरीत सबल शक्ति चाहिए यानी कि जो तामसिक शक्ति है जो राजसिक शक्ति है उसके विपरीत सतोगुण वाली एक शक्ति ऐसी चाहिए जो कि आपका हाथ पकड़ कर के आपको बाहर निकाल ले, और वह है बस परमात्मा का नाम, इनको ये समझ आ जाता है।
उत्तम कोटि के साधक हो जाते हैं और अब यह अपनी ऊर्जा और समय का निवेश प्रभु नाम में करना शुरू कर देते हैं, अब तरीका चाहे कुछ भी हो, ये राजयोग का मार्ग भी पकड़ सकते हैं, यह भक्ति योग का मार्ग भी पकड़ सकते हैं, ये कर्मयोगी भी हो सकते हैं।
तरीका इनका अलग-अलग हो सकता है, ये ध्यान में भी प्रवीण हो सकते हैं, लेकिन मैं आपको पक्की बात कहता हूं कि जो भी आपको ब्रह्मचारी दिखेंगे, जितने भी आपको विलक्षण प्रतिभा से युक्त व्यक्ति दिखेंगे या जितने भी महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने भी ब्रह्मचर्य के विषय में बात की है, आप देखोगे कि उनके जीवन में अध्यात्म होगा, उनके जीवन में प्रभु नाम होगा, उनके जीवन में आस्तिकता होगी, तभी इस मार्ग पर आगे लंबा चला जा सकता है।
उत्तम साधक ऐसे होते हैं कि यह जो संकल्प करते हैं उसे यह सहज निभा लेते हैं, फिर चाहे विवाह पर्यंत या आजीवन जैसी भी उनके जीवन की व्यवस्था हो, जितनी जो परिस्थिति उनके सामने बनती है, उसके अनुसार वो चलते हैं लेकिन वो अप्राकृतिक तरीके से अपने ब्रह्मचर्य के संकल्प को नहीं टूटने देते हैं तो इस प्रकार के उत्तम कोटि के साधक, ब्रह्मचर्य को गृहस्थ जीवन में जाने के बाद भी चला लेते हैं क्योंकि संयमी है, इनका चरित्र बेहतर है तो यह जो साधक होते हैं यह उत्तम साधक हैं और यह इस ऊर्जा को दिशा दे लेते हैं, इस ऊर्जा का सही प्रयोग कर लेते हैं, इनकी आध्यात्मिक प्रगति भी होती है और यह बड़े-बड़े विशाल काम कर जाते हैं जीवन में, तो ये कैसे हो रहा है क्योंकि इनके पास वह बल है, वो ऊर्जा है जिससे कि ये जो भी संकल्प करते हैं पूरा होता है।
तो इस विषय में हमें समझना होगा कि पहले अधो साधक से मध्यम साधक पर आओ और फिर मध्यम साधक से उत्तम कोटि के साधक बनने की कोशिश करो, तब यह ऊर्जा आपके अंदर विकसित होगी और आप इस बात को पक्का समझें फिर आपको ब्रह्मचर्य बहुत कठिन मालूम नहीं पड़ेगा, यह बात पक्का समझ लीजिये।।