Sign In


Forgot Password?

Don't have account, Sign Up Here

Forgot Password

Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link and will create a new password via email.


Have an account? Sign In Now

You must login to ask a question.


Forgot Password?

Need An Account, Sign Up Here

Please briefly explain why you feel this question should be reported.

Please briefly explain why you feel this answer should be reported.

Please briefly explain why you feel this user should be reported.

Sign InSign Up

Brahmacharya App: Self-Control, Peace, and Success

Brahmacharya App: Self-Control, Peace, and Success Logo Brahmacharya App: Self-Control, Peace, and Success Logo

Brahmacharya App: Self-Control, Peace, and Success Navigation

  • Home
  • About Us
  • Blog
  • Contact Us

Mobile menu

Close
Ask a Question
  • Home
  • Add group
  • Groups page
  • Communities
  • Questions
    • New Questions
    • Trending Questions
    • Must read Questions
    • Hot Questions
  • Polls
  • Tags
  • Badges
  • Users
  • Help

Brahmacharya App: Self-Control, Peace, and Success Latest Questions

Anonymous
  • 0
Anonymous
Asked: December 23, 20242024-12-23T09:14:33+00:00 2024-12-23T09:14:33+00:00In: ब्रह्मचर्य का पालन कैसे करें?

How to Practice Celibacy?

  • 0
How to Practice Celibacy?
  • 1 1 Answer
  • 66 Views
  • 0 Followers
  • 0
Answer
Share
  • Facebook

    1 Answer

    • Voted
    • Oldest
    • Recent
    • Random
    1. Vishnu Gupta
      Best Answer
      Vishnu Gupta Yogi
      2024-12-23T09:27:29+00:00Added an answer on December 23, 2024 at 9:27 am
      This answer was edited.

      जब व्यक्ति को लगने लगता है कि मैं सही हूं, मैं कोई गलती नहीं कर रहा हूं, तो उस स्थिति में उस व्यक्ति के अंदर किसी भी प्रकार के सुधार की कोई संभावना नहीं रहती है। जब व्यक्ति को यह पता चल जाता है कि मैं कहां गलत हूं, तो जो गलती वह कर रहा है, उस गलती को वह लंबे समय तक नहीं कर पाएगा। उसके अंदर एक ग्लानि का भाव आने लगेगा और उसे लगेगा कि इस स्तर पर सुधार करना है।

      वह उस स्तर पर सुधार कर भी लेगा। यानी कि अगर हमें किसी भी स्तर पर सुधार करना है, तो हमें ठीक-ठीक यह पता होना चाहिए कि हम गलती कहां कर रहे हैं।

      इसीलिए, अनेक बंधुओं से बात करने के बाद, उनको समझने के बाद, इस विषय के गहन विश्लेषण और शास्त्रों के स्वाध्याय के बाद हमने जो पाया है, वह दस गलतियां हम आपके साथ साझा कर रहे हैं जो कि ब्रह्मचर्य पालन में व्यक्ति करता है। अगर आप इस स्तर पर सुधार करते हैं, तो आपको बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे।

      अब हम आगे बढ़ते हैं और अपनी इन दस गलतियों को समझते हैं।

      1. भोगों में ही सुख है

      यहां पर सबसे पहली गलती यह है कि मन को व्यक्ति अपना हितैषी समझने लगता है और भोगों में ही सुख है, ऐसा वह समझने लगता है। इसे मैं एक उदाहरण से कहता हूं।

      आप समझें कि आपका कोई व्यक्ति अहित करना चाहता है, आपको नुकसान पहुंचाना चाहता है और इसके लिए वह आपके पास आता है, बैठता है, घुलता-मिलता है और आपको समझने की कोशिश कर रहा है। लेकिन अब तक आपको नहीं पता है कि यह व्यक्ति मेरा अहित करने के लिए मेरे पास आता है।

      अब जो व्यक्ति आपके अहित के लिए आपके पास आ रहा है, उसके पास उठने-बैठने वाला एक व्यक्ति है जो कि आपका भी मित्र है। उसे पता चलता है कि अरे, यह व्यक्ति तो मेरे मित्र के पास इसलिए जाता है कि उसका अहित कर सके, उसे नुकसान पहुंचा सके, उसके मन में गलत चीजें भर सके।

      अब वह मित्र आपके पास आता है और बताता है कि अमुक व्यक्ति, जो आपके पास आजकल आ रहा है, वह आपका अहित करने के लिए आ रहा है, आपको नुकसान पहुंचाना चाहता है। अब जैसे ही आपको यह पता चलेगा कि उस व्यक्ति की वास्तविकता क्या है, कि वह आपको नुकसान पहुंचाना चाहता है, तो आप सचेत हो जाएंगे। और वह व्यक्ति जब दोबारा आपके पास आएगा, तो आप उसकी किसी भी बात पर विशेष ध्यान नहीं देंगे। भले ही आप उसकी बात सुन लें, लेकिन आपको पता होगा कि ये जितनी भी बातें हैं, यह सारी बातें मुझे नुकसान पहुंचाने के लिए ही की जा रही हैं।

      बिल्कुल इसी प्रकार आप समझें कि अगर आपको अपने मन की वास्तविकता का पता चल जाता है कि यह जितनी भी बातें आपको बताता है, सुझाव देता है और कहता है कि इस भोग में सुख है, वो मिल गया तो अगले भोग में सुख है, काम में सुख है, स्त्री का संपर्क मिल जाए तो उसमें सुख है, हस्तमैथुन आदि क्रियाओं में लगे रहो तो उसमें सुख है—तो ये सारी बातें आपका पतन कराने के लिए हैं।

      अगर ठीक-ठीक यह बात आपके मन में बैठ जाए और मन की वास्तविकता का आपको बोध हो जाए, तो आप मन के बहकावे में नहीं आएंगे। फिर जो भी सुझाव आपको यह मन देगा, उसे तुरंत ही अपने मस्तिष्क से हटा सकेंगे। इस बात को पक्का करके मन में बिठाना होगा कि मन के सुझाव पतन की तरफ ले जाने वाले हैं।

      जब तक यह सधता नहीं है… जब यह सध जाए, तो इसके ही सुझाव सकारात्मक हो जाते हैं। लेकिन वह एक साधक की स्थिति होती है। अभी आपको मन के सुझावों से बचना है।

      2. लापरवाही करना

      दूसरे स्थान पर जो गलती व्यक्ति करता है, वह है लापरवाही। यानी कि उसने ब्रह्मचर्य का पालन करना शुरू किया। अब उसने पहले जैसे, पहले एक हफ्ते में ही ब्रह्मचर्य उसका खंडित हो रहा था। अब उसने पंद्रह दिन तक ब्रह्मचर्य कर लिया। एक महीने तक ब्रह्मचर्य कर लिया।

      अब ऐसी स्थितियों में साधक लापरवाह हो जाता है कि, “अरे, मैं तो ब्रह्मचर्य कर ही लेता हूं। अब तो मुझे कोई समस्या नहीं है। अब तो मुझे काम के विकार सताते नहीं हैं।” लेकिन उसे नहीं पता है कि विकार समाप्त नहीं हो गए हैं। विकार प्रसुप्त अवस्था में हैं, अभी सोए हुए हैं।

      अब उनको कोई थोड़ा सा चित्र मिल जाए, कोई थोड़ा सा विचार मिल जाए, आलंबन मिल जाए, तो वो दोबारा खड़े हो जाएंगे और पूरे सक्रिय हो जाएंगे। आपको भ्रष्ट कर देंगे।

      तो आपको लापरवाह नहीं होना है। भले ही आपने एक महीना, दो महीना, पांच महीने का ब्रह्मचर्य कर लिया हो, लेकिन फिर भी उतना ही सचेत बने रहना है जितना सचेत आप ब्रह्मचर्य के पहले दिन और पहले संकल्प के समय में थे।

      तो अगर आप लापरवाह हो जाते हैं, तो आपका ब्रह्मचर्य नष्ट होगा ही होगा। और अगर सचेत, सजग बनकर के, सावधान रहकर के ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, तो आप आगे बढ़ जाएंगे। यह हमारी दूसरी गलती है।

      3. निराशा

      तीसरे स्थान पर आती है निराशा। हम इस बात को बड़ा देखते हैं कि, अरे मुझे तो बार-बार स्वप्न दोष हो जाता है। मुझे तो बार-बार काम के वेग सताते हैं। मैंने तो गलत आहार ले लिया। मैं तो अब इतना दुर्बल हो गया हूं। मेरा शरीर ठीक होना मुश्किल है। मुझे तो धातु रोग की समस्या है।

      इस तरीके से बहुत सारे विचार व्यक्ति के मन में निरंतर चलते रहते हैं और वह मन के तल पर कमजोर होना शुरू हो जाता है। जितना वह कमजोर होगा, उतना ही मन उसके ऊपर हावी हो जाएगा और गलत तरीके के विचारों में उसे फंसा लेगा।

      आत्मबल ही मन को हराने का साधन है। अगर आप निराश हो जाएंगे तो आपको कोई नहीं बचा सकेगा, क्योंकि यह बल अंदर से मिलता है। यह बाहरी विषय वस्तु नहीं है। तो आपको समझना है कि चाहे जो भी स्थिति हो, अगर मैं आज से ठीक चलता हूं तो मैं पुनः अपने आप को सक्षम बना सकता हूं।

      और यही सच भी है। ऐसा नहीं है कि यह कोई काल्पनिक बात है। यही सच है। जो सच है बस उसको स्वीकार करना है। आपके शरीर के अंदर बहुत अद्भुत क्षमता है।

      ब्रह्मचर्य एक विशेष शक्ति है, एक विशेष बल है। इसको आप जब धारण करेंगे, भले ही आपकी आयु बीस साल हो, पच्चीस हो या तीस हो या उससे अधिक हो, आपको इससे लाभ मिलेंगे ही मिलेंगे। यहां तक कि अगर पचास या साठ साल की आयु है, ब्रह्मचर्य तो तब भी लाभ देता है, तब भी प्रभाव दिखाता है।

      तो आपको निराश नहीं होना है, हताश नहीं होना है और पूरे आत्मबल के साथ इस मार्ग पर आगे बढ़ना है। निराशा और हताशा को जीवन में स्थान ना दें। यह हमारा तीसरा विषय हुआ।

      4. साधनों का सहारा ना लेना

      चौथे स्थान पर है, ब्रह्मचर्य को पुष्ट करने वाले साधनों का सहारा न लेना। हमारे योगियों ने कई ऐसे तरीके बताए हैं, जो इस मार्ग में आपकी सहायता कर सकते हैं।

      सबसे पहला है शौच (शुचिता)। शुचिता की बात आती है, तो सबसे पहले शरीर को साफ रखना शुरू करें। दिन में दो बार अच्छे से स्नान करें। यदि आपने व्यायाम किया, पसीना निकला, तो शरीर की सफाई हुई। अन्य प्रकारों से भी जितना हो सके, शरीर को साफ रखें। धीरे-धीरे नाम जप, ध्यान, स्वाध्याय आदि के माध्यम से मन की सफाई करनी है। इस प्रकार शौच अनिवार्य है।

      दूसरे स्थान पर आता है प्रत्याहार, यानी इंद्रियों को अंतर्मुखी करना। जब आपके भीतर जो आनंद है, वह आपको अनुभव होना शुरू हो जाएगा, तो बाहरी विषयों के आकर्षण में कमी पड़ने लगेगी। उदाहरण के लिए, हमारे योगी, तपस्वी, ऋषि आदि परम आनंदित रहते थे। क्या वे बाहरी विषयों से जुड़कर आनंदित रहते थे? आप कहेंगे नहीं, क्योंकि बाहरी विषय तो उनके पास कुछ भी नहीं होते थे। तो आनंद कहां से था? आनंद था आंतरिक। यानी, ऐसा कुछ विषय भी है, जो आपको अंदर से ही आनंदित करता है।

      जब उस स्रोत से आप जुड़ना शुरू कर देंगे और परमात्मा के नाम, ध्यान, नाम जप, पूजा, कीर्तन, मनन आदि साधनों में रुचि आनी शुरू हो जाएगी, तो आपका आकर्षण बाहरी विषयों से कट जाएगा। अंतर्मन के आनंद का अनुभव हो जाने पर प्रत्याहार एक अच्छा साधन बनता है। तीसरे स्थान पर है स्वाध्याय। जब आप महापुरुषों की वाणी को पढ़ते हैं, शास्त्रों को पढ़ते हैं, भगवान के शब्दों को पढ़ते हैं, तो आपको स्पष्टता होती है और आपका भ्रम नष्ट होता है। यह भ्रम कि भोगों में ही सुख है, या इन्हें प्राप्त कर लेना ही जीवन में पूरी तरह संतुष्टि पाने का मार्ग है, टूट जाएगा। जब भ्रम टूटेगा, तो आप सही मार्ग पर अग्रसर होने लगेंगे।

      अंत में आता है ईश्वर-प्रधानता। अपने आप को परमात्मा के अधीन समझकर उनके चरणों में समर्पित करें और इस जीवन को जीएं।

      यदि इन साधनों का प्रयोग आपने कर लिया, तो ब्रह्मचर्य बड़ा सरल हो जाएगा, बहुत सरल। आपको इन साधनों को अपने जीवन में अपनाना है और इनका सहारा लेना है। जब आपकी जिज्ञासा बनेगी, तब आप इन्हें जानने का प्रयास करेंगे और मार्गदर्शन भी प्राप्त करते जाएंगे।

      लेकिन जिज्ञासा और प्रयास तो होना चाहिए, तभी आपको मार्ग मिलेगा। यह हमारी चौथी गलती है कि ब्रह्मचर्य को पुष्ट करने वाले साधनों का व्यक्ति प्रयोग नहीं करता है।

      5. आतुरता

      पांचवें स्थान पर आती है आतुरता। हमने कितने बंधुओं को देखा जो कहते हैं कि, “मुझे तो एक महीना हो गया, मुझे तो कोई भी लाभ दिखाई नहीं दे रहे हैं। मुझे तो दो महीने हो गए, अब तक कोई प्रभाव दिखाई नहीं दिया।”

      पहली बात तो यह है कि पहले बदलाव होते हैं आंतरिक तल पर, विचारों के तल पर। शांति आनी शुरू हो जाती है, सहजता आनी शुरू हो जाती है। जो ग्लानी का भाव था, वह खत्म होना शुरू हो जाता है। आंतरिक तल पर बदलाव आते हैं, उनको अनुभव करो।

      फिर सूक्ष्म तलों पर, शारीरिक तल पर बदलाव आते हैं, जो आप शुरुआती समय में अनुभव नहीं कर पाएंगे। आप थोड़ा धैर्य रखें। एक वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन निरंतर करें, फिर आपको स्पष्ट अंतर देखने को मिलेंगे।

      लेकिन जो यह आतुरता है, इसके कारण व्यक्ति को लगता है कि, “अरे, मुझे तो कोई लाभ नहीं मिल रहे हैं। मैं तो कुछ गलत कर रहा हूं। दूसरे लोग जैसा कहते हैं, वैसे प्रभाव तो नहीं है।”

      इस अधीरता के कारण, आतुरता के कारण वह फिर से ब्रह्मचर्य नाश करना शुरू कर देता है। उसका पतन हो जाता है। तो इस स्तर पर भी आपको ध्यान देना है कि आतुरता नहीं होनी चाहिए।

      6. परिवेश का परिवर्तन

      छठे स्थान पर है परिवेश का परिवर्तन। जैसे कि आप किसी एकांत कमरे में हैं और आपको काम का वेग सताने लगे। आप किसी ऐसे स्थान पर हैं, जहां आप लंबे समय तक अकेले ही लेटे हुए हैं। तमोगुणी वृत्तियां बढ़ रही हैं, काम के विचार आने लगे। अब उस स्थान पर न रुकें, उस परिवेश में न रुकें।

      या फिर आप कुछ ऐसे लोगों का संग कर रहे हैं, किसी ऐसी मंडली में बैठे हुए हैं, जहां पर गलत प्रकार की बातें होनी शुरू हो जाती हैं। इस प्रकार की स्थिति बनने लगती है, तो उस मंडली में न बैठे रहें। स्थान का परिवर्तन करें, क्योंकि स्थान की एक ऊर्जा होती है। अगर कोई स्थान आपको नकारात्मक स्थिति में ले जा रहा है, तो वहां से उठकर तुरंत चलना शुरू कर दें। किसी दूसरे स्थान पर चले जाएं, किसी दूसरे कक्ष में चले जाएं। जहां पर कोई हो, ऐसे स्थान पर चले जाएं। यदि आपके पास कोई पार्क आदि है, तो वहां चले जाएं।

      इस स्थिति को जब आप बदलेंगे, तो मनोदशा पर भी उसका प्रभाव पड़ेगा। एक पीरियड होता है, जब काम का वेग आता है। उस वेग का एक समय होता है। उस समय को जब आप क्रॉस कर जाएंगे, तो आप उस वेग से बच जाएंगे। अगर ऐसा आप करते हैं, तो इससे भी आपको लाभ देखने को मिलेगा।

      स्थान का परिवर्तन भी कई बार आपको उस वेग से बचा सकता है। अगर आप वहीं रुकते हैं और उस वेग में ही, उस काम में ही रस लेना शुरू कर देते हैं, तो फिर आप निश्चित रूप से भ्रष्ट हो जाएंगे। धीरे-धीरे वह वृत्ति इतनी बढ़ेगी कि आपको वह गलत क्रिया करने पर विवश कर ही देगी। इस बात का भी ध्यान रखना है।

      7. ब्रह्मचर्य की अवधारणा

      सातवें स्थान पर है कि ब्रह्मचर्य का आपको सही अर्थ पता होना चाहिए। यहां पर दो शब्द हैं: “ब्रह्म”, यानी कि सर्वोच्च सत्ता, पारब्रह्म, परमेश्वर; और “चर्या”, जिसका अर्थ है ऐसा आचरण जो आपको भगवान की तरफ ले जाता हो। यही ब्रह्मचर्य है।

      अब, अगर आपकी जिव्हा बहुत अधिक अनियंत्रित हो जाती है और बार-बार आपको गलत प्रकार के पदार्थों को खाने के लिए प्रेरित करती है, तो आप ब्रह्मचर्य का नाश कर रहे हैं। क्योंकि आप उस मार्ग पर जा रहे हैं जो कि आपको परमात्मा से विमुख करता है, उनके सम्मुख नहीं।

      इस तरीके से जब आप देखेंगे और इस पर गहनता से सोचेंगे, तो एक-एक इंद्री का आपको समझ आ जाएगा कि ये सारी इंद्रियां ही हमें भटका रही हैं। ये सारी इंद्रियां ही हमें पतन की ओर ले जा रही हैं और प्रभु से विमुख कर रही हैं।

      तब आपको समझ आएगा कि एक इंद्री पर संयम कर लेना मात्र ही ब्रह्मचर्य नहीं है। ब्रह्मचर्य है “सर्व इंद्रिय संयम”। जो हमने कई बार बताया है, ब्रह्मचर्य का अर्थ वही है।

      जब आपको यह समझ आ जाएगा, तो आप बहुत सावधान हो जाएंगे और आप हर एक इंद्री को रोकेंगे। जब हर एक इंद्री को रोकेंगे, तो मन को लगेगा कि यह तो बड़ा सावधान व्यक्ति हो गया है। यह तो हर स्थान से मुझे काट रहा है। यह तो हर स्थान पर मेरे सम्मुख खड़ा हो जाता है।

      धीरे-धीरे जो मन आपका शत्रु है, वह आपका मित्र होने लगेगा। क्योंकि मन का स्वभाव है चलना। अब, जब आप उसे गलत स्थान पर नहीं चलने दे रहे हैं, तो स्वाभाविक ही वह सही स्थान पर चलना शुरू कर देगा।

      यकीन मानिए, ऐसा ही होता है। हमने अनुभव किया है। इससे भी आपके जीवन में बड़े बदलाव होंगे और आपको एक अलग ही मार्ग प्राप्त हो जाएगा। तो ब्रह्मचर्य की व्यापक अवधारणा को समझना यह भी जरूरी हो जाता है।

      8. वेगों को सहन करना

      आठवें स्थान पर है काम के वेग को सहन करना। भगवान ने कहा है कि काम, क्रोध आदि के वेगों को जो सह जाता है, वही योगी है, वही सुखी है। तो आपको समझना है कि भगवान ने कहा है कि वेगों को सहना है। यानी कि भगवान भी यह कह रहे हैं कि वेग आएंगे जरूर, बस तू उसे सह जाना। तू उसमें फंसना मत।

      अगर वेग आया और आपने संकल्पबद्ध होकर, एकाग्रचित होकर, चिंतन के माध्यम से पूर्व के अपने अनुभवों को देख कर, उस भोग को दुख देने वाला समझ कर, उस भोग का, उस वेग का त्याग कर दिया, तो समझें कि आप उससे आगे बढ़ गए।

      जितनी बार आप ऐसा करेंगे, वेग को सह जाएंगे, उतना आपका आत्मबल बढ़ेगा और मन कमजोर होने लगेगा। आप उस स्थिति से निश्चित रूप से बाहर आ जाएंगे।

      वेगों को सहन करना ब्रह्मचर्य के मार्ग में अनिवार्य बिंदु है। ऐसा कोई नहीं है जिसे यह वेग नहीं सताते, जब वह अपने शुरुआती समय में होता है। लेकिन जो इसे सह जाता है, वह साधक हो जाता है। और जो इसमें फंस जाता है, वह भोगी हो जाता है।

      9. मोबाइल से दूरी

      नौवें स्थान पर हमारा बिंदु है। एक बड़ी बीमारी है आज के समय में आपका फोन। आपके फोन में आज के समय में तो ऐसी स्थिति बन गई है कि आप कोई सही चीज भी देख रहे हैं, इस प्रकार का ऐड आ जाएगा, विज्ञापन आ जाएगा, जो कि पूरी तरह से गलत वेबसाइट्स पर ले जाने वाला और गलत तरीके के दृश्य आपको दिखाने वाला है। इस प्रकार की चीजें आपके सामने आ जाएंगी।

      आप इस फोन का ही सही प्रयोग कर सकते हैं तो आपका मंगल निश्चित रूप से होगा। कहीं ना कहीं बदलाव निश्चित रूप से होंगे। लेकिन इससे ही आप गलत प्रकार की फिल्में, गलत प्रकार के चित्र, इस तरीके की चीजें भी देख सकते हैं। तो आपको कम से कम प्रयोग इसका करना है और जितना प्रयोग करना है, आपको केवल सही चीजें ही देखनी हैं।

      बैठ कर के रील स्क्रॉल कर रहे हैं, इस प्रकार की चीजें निरंतर देख रहे हैं। पता भी नहीं चलता, घंटों का समय आपका खराब हो जाता है। इन चीजों से बिल्कुल बचें। कम से कम इसका प्रयोग करें। जितना प्रयोग करें, सार्थक प्रयोग करें।

      बाकी समय में भले ही एक छोटा फोन रख लें, जिसमें केवल आप फोन पर बात कर सकते हैं। लेकिन आपको एक नियम जरूर बनाना होगा कि इससे मुझे दूरी बनाए रखनी है और इसका उचित और सम्यक प्रयोग करना है। यह भी आज के समय के हिसाब से अनिवार्य है।

      10. स्वयं का मूल्यांकन

      अब दसवां हमारा यहां पर बिंदु है कि जो आपने यह पीछे के नौ बिंदु समझे हैं, क्या इनका पालन आप ठीक से कर रहे हैं? क्या इन गलतियों का आप सुधार कर रहे हैं? इस बात की जांच आपको रोज संध्या में करनी है। इन्हें सबको लिख लें, लिखकर के रख लें, और उसके बाद एक-एक करके इन सभी स्तरों पर सुधार करें। अपने आपको मजबूत करें और फिर अंतिम, जो हमने कहा, कि मूल्यांकन करें कि क्या आप ठीक से इन सब स्तरों पर कार्य कर रहे हैं।

      बस अगर इन दस गलतियों का सुधार आप कर लेते हैं और अगर इतना आपने कर लिया, तो आप यकीन मानिए, आपको कोई भ्रष्ट नहीं कर सकेगा। आप एक विशाल व्यक्तित्व वाले व्यक्ति होंगे और आप चाहे किसी भी स्थिति में आज फंसे हुए हैं, आप उससे बाहर भी आएंगे। आप इतने सक्षम हो जाएंगे कि आप अन्य व्यक्तियों को भी प्रेरित करेंगे इस मार्ग पर बढ़ने के लिए, उनके आचरण को सुधारने के लिए और अपने आप को सबल करने के लिए। तो इन चीजों का आपको ध्यान रखना है। हमने सरलता से ये चीजें आपको समझाने का प्रयास किया।

      अपेक्षा है कि पूरा मार्गदर्शन आपको ठीक से समझ आ भी गया होगा। तो आज के लिए आपके लिए यही मार्गदर्शन था। आपके प्रश्नों के आधार पर भविष्य में मार्गदर्शन अन्य भी होते रहेंगे। आज के लिए इतना ही, शेष चर्चा कल करेंगे।

      ।।राधे राधे।।

      • 2
      • Reply
      • Share
        Share
        • Share on Facebook
        • Share on Twitter
        • Share on LinkedIn
        • Share on WhatsApp
    Leave an answer

    Leave an answer
    Cancel reply

    Browse

    Sidebar

    Ask A Question

    Stats

    • Questions 53
    • Answers 117
    • Best Answers 18
    • Groups 4
    • Popular
    • Answers
    • Vishnu Gupta

      आप ब्रह्मचर्य रहने के लिए सुबह कौन कौन से योगाभ्यास ...

      • 12 Answers
    • Vishnu Gupta

      ब्रह्मचर्य और अध्यात्म किस प्रकार एक दूसरे से सम्बन्धित हैं?, ...

      • 10 Answers
    • Vishnu Gupta

      ब्रह्मचर्य नो फैप से किस प्रकार अलग है?, क्या नो ...

      • 9 Answers
    • Ranjan Ghosh
      Ranjan Ghosh added an answer Adhyatma aur naam jap ke Bina Brahmacharya sambhar nahin hain...Aaj… April 29, 2025 at 11:59 am
    • Santos kumar
      Santos kumar added an answer Bro bahut hi galat hai isko aasani se khatm kar… February 5, 2025 at 2:41 am
    • JeetBhakat
      JeetBhakat added an answer भागवत गीता के दूसरे अध्याय से हमें ये सीख मिलती… January 14, 2025 at 3:24 pm

    Related Questions

    • How to quit masterbation

      • 0 Answers
    • How to quit masterbation

      • 1 Answer
    • ब्रह्मचर्य में आपको कितना सावधान रहना होगा?

      • 7 Answers
    • Brahmacharya Ko Follow Kaise Kare?

      • 1 Answer
    • Netra ka brahmcharya kaise palan karen?

      • 1 Answer

    Top Members

    shailendrapedia

    shailendrapedia

    • 0 Questions
    • 311 Points
    Contributor
    Vishnu Gupta

    Vishnu Gupta

    • 11 Questions
    • 225 Points
    Yogi
    Ranjan

    Ranjan

    • 0 Questions
    • 186 Points
    Acharya
    Rohit_kumar

    Rohit_kumar

    • 5 Questions
    • 100 Points
    Pundit
    Anoop

    Anoop

    • 0 Questions
    • 48 Points
    Vidyarthi (Scholar)

    Trending Tags

    bad habits Brahmacharya brahmacharya challenge Brahmacharya Practice brahmcharya hastmaithun marriage life masterbation kaise chode netra ka brahmcharya kaise palan karen ?? question shaillendrapedia social media solution

    Explore

    • Home
    • Add group
    • Groups page
    • Communities
    • Questions
      • New Questions
      • Trending Questions
      • Must read Questions
      • Hot Questions
    • Polls
    • Tags
    • Badges
    • Users
    • Help

    Footer

    Important Pages

    • Home
    • Privacy Policy
    • Terms and Conditions
    • Shipping Policy
    • Return/ Refund Policy
    • App Content Copyright
    • About Us

    © 2025 brahmacharya.in All Rights Reserved
    With Love by shailendrapedia

    Insert/edit link

    Enter the destination URL

    Or link to existing content

      No search term specified. Showing recent items. Search or use up and down arrow keys to select an item.