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Brahmacharya App: Self-Control, Peace, and Success Latest Questions

Anonymous
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Anonymous
Asked: December 20, 20242024-12-20T09:54:21+00:00 2024-12-20T09:54:21+00:00In: ब्रह्मचर्य के लाभ

ब्रह्मचर्य के प्रभाव कितने दिन में दिखेंगे?

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ब्रह्मचर्य के प्रभाव कितने दिन में दिखेंगे?
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    1. Vishnu Gupta
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      Vishnu Gupta Yogi
      2024-12-20T10:26:55+00:00Added an answer on December 20, 2024 at 10:26 am

      नमस्कार मित्रों, आज एक महत्वपूर्ण विषय पर हम चर्चा कर रहे हैं और आज का हमारा विषय है कि ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए कितने समय के बाद हमें उससे समुचित फायदे दिखने शुरू हो जाते हैं, तो पहले हमें समझना होगा कि ब्रह्मचर्य है क्या, क्योंकि पहले हमें यही पता होना चाहिए।।

      क्या है ब्रह्मचर्य?

      किसी एक इंद्री पर ही निग्रह करके या फिर उसको रोक लेना मात्र ही ब्रह्मचर्य नहीं है, इसकी जो अवधारणा है वह बहुत व्यापक है, जब हम अपनी सभी इंद्रियों को नियंत्रित करते हैं, तभी जा करके हम अपनी जननेंद्रियों को नियंत्रित कर सकते हैं, लेकिन इससे पूर्व ही अगर बात हो हमारी दृष्टि की, अगर उसमें पवित्रता नहीं है, हमारे कानों से जो हम सुनते हैं, उसमें शुद्धि नहीं है, उन पर नियंत्रण नहीं है तो फिर किस तरह से हम इस मुश्किल काम को एकदम से कर सकते हैं।।

      उदाहरण से समझिये-

      इसे ऐसे समझिये कि एक व्यक्ति जो कि पचास किलो वजन भी नहीं उठा सकता है, अब अगर उसके कंधों पर एकदम से सौ किलो वजन डाल दिया जाए तो उसे या तो कुछ ना कुछ शारीरिक नुकसान हो जाएगा या फिर हतोत्साहित हो जाएगा, लेकिन अगर उस वजन को धीरे-धीरे से बढ़ाने की कोशिश करें, जैसे कल पचास तो आज पचपन करें, इक्यावन करें तो वह सहज ही उस स्थिति में जा सकता है, तो इसी तरह से अगर हम अपनी जननेंद्रियों पर नियंत्रण स्थापित करना चाहते हैं, और ब्रह्मचर्य में प्रतिष्ठित होना चाहते हैं तो उसके लिए सीधी सी बात समझनी है कि हमें अपनी सभी

      इंद्रियों के ऊपर नियंत्रण करना होगा।।

      इन्द्रियों पर नियंत्रण कैसे हो-

      सभी इंद्रियों पर नियंत्रण करने के लिए अष्टांग योग का मार्ग हमारे लिए हो सकता है या दूसरे बहुत सारे तरीके या हमारी संकल्प शक्ति हो सकती है, जो सबसे उचित और सही कार्य करने वाली होती है, अब जैसे एक संकल्प हमने किया और उस संकल्प को हमने लापरवाही से किया, बस लापरवाही से हमने इसे शुरू कर दिया तो समझ लीजिए कि आपकी संकल्प शक्ति उतनी ही कमज़ोर हो जाती है, लेकिन अगर आपने एक छोटा सा ही संकल्प किया, बहुत बड़ा संकल्प करने की शुरू में जरूरत नहीं होती है तो छोटा सा कोई संकल्प किया और उसको पूरे मन से पूरा करने की कोशिश की, फिर वह पूरा हुआ तो दूसरा संकल्प किया तो ऐसे ही हम अपने आप को परिपक्व कर सकते हैं।।

      ब्रह्मचर्य में गलती- 

      अगर एक व्यक्ति कुछ समय तक ब्रह्मचारी रहता है लेकिन उसका ब्रह्मचर्य कैसा है, कि उसने अपने शरीर से किसी भी तरह के को कोई क्रिया नहीं की, अपने स्वभाव से अपने वीर्य को संरक्षित रखा, लेकिन मन में उसके विचार चलते रहे, मन में उस की तीव्र इच्छा चलती रही, तो अगर मानसिक रूप से वह उन कार्यों में संलग्न है तो उसको वहां पर ब्रह्मचारी नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि उसके मन में चिंतन तो वही चल रहा है, इसी कारण से उसका जो वीर्य है, वह उसके रक्त का हिस्सा नहीं बन पाएगा, वह उसके ब्लड में नहीं जा पाएगा, उसका वीर्य जो है, विरुद्ध हो जाएगा और फिर उसके बहुत सारे तरीके से बनेंगे जिससे कि वह बाहर निकलेगा, स्खलित हो जाएगा।।

      स्वप्नदोष क्यों हो जाता है-

      बहुत सारे भाई प्रश्न करते हैं कि हम चालीस दिन से ब्रह्मचर्य कर रहे हैं, या फिर हम पचास दिन से ब्रह्मचारी हैं लेकिन फिर भी स्वप्न दोष हो जाता है, शीघ्रपतन हो जाता है, और भी बहुत सारी समस्याएं हैं तो इसका कारण पीछे क्या है?

      इसका कारण जो है वो भगवान ने गीता में बताया है, भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि आपके इंद्रियों के जो विषय हैं, आपने इंद्रियों को तो रोक लिया लेकिन विषयों को नहीं रोक पाए जैसे कि आप कहीं बाहर गए हुए हैं और आपका किसी स्टॉल को देख करके बर्गर खाने का मन करता है, पिज़्ज़ा खाने का मन करता है, लेकिन आप अपने मन को रोक लेते हैं, आप उस स्टॉल पर नहीं जाते हैं, वहां से पिज्जा नहीं खरीदते हैं और ना ही खाते हैं लेकिन मन में आपके वह जो भाव बना हुआ है वह इतना तीव्र हो जाता है कि आप घर भी आ जाते हैं फिर भी उस पिज्जे के बारे में, बर्गर के बारे में सोच रहे हैं आपको से जा रहे हैं तो जो निग्रह है यह उस स्तर का काम नहीं कर सकता है।।

      जबरदस्ती नहीं करनी है-

      इसी तरीके से जब आप ब्रह्मचारी होने का दावा तो करते हैं लेकिन मन से ब्रह्मचारी आप नहीं हो पाते, निरंतर मन में विचार चलते रहते हैं तो फिर आपको और ज्यादा समस्या बढ़ जाएगी, कारण क्या है कि आपने जबरदस्ती रोक तो दिया लेकिन वह कब तक रुका रहेगा, जैसे हम अपनी मुट्ठी को बंद करते हैं, और इस मुट्ठी को बंद करके ही रखता हूं, अब अगर बहुत कस के बंद करूंगा तो कितनी देर बंद रखूंगा एक मिनट, दो मिनट, दस मिनट, पंद्रह-बीस मिनट लेकिन थोड़ी ही देर बाद हमें इसको ढीला छोड़ना पड़ेगा, इसी तरह से आप अपने मन को बहुत ज्यादा प्रयास पूर्वक बाँध कर नहीं रख सकते, तो करना क्या होगा, साधना, इसी को साधना कहते हैं।।

      साधना क्या है?

      जब हम साध रहे हैं अपनी किसी वृत्ति को, बार बार, हमारा मन तो उधर जाता है लेकिन हम खींचकर लाते हैं, अपने मन को और प्रतिष्ठित करते हैं, वही साधना है, और यही साधना हमें निरंतर करनी होती है, उसके बाद ही आपका मन अब स्वभाव से ही उधर नहीं जाएगा, कारण क्या है कि आपने अपनी सात्विक वृत्ति को बढ़ा दिया है।।

      अब आपको आपके शरीर को वह समय मिलेगा फिर वह कैसे काम करेगा, पहले रस बनाएगा फिर रक्त बनाएगा, फिर मांस, फिर मेद, फिर अस्थि, फिर मज्जा और फिर क्या बनता है शुक्र बनता है, तो जो यह विधान शास्त्रों में बताया गया है यह

      पूर्ण सत्य है, इसको अगर मेडिकल साइंस कुछ भी कहती है या फिर लोग ही भ्रमित करने की कोशिश करते हैं तो वह आप उसे पूर्णता अस्वीकार करें, क्योंकि हमारे ऋषि मुनी, एक वैज्ञानिक से भी बड़ी भूमिका निभाकर के गए हैं क्योंकि उन्होंने केवल शारीरिक स्तर पर ही काम नहीं किया बल्कि मानसिक स्तर पर भी किया, मनुष्य को पूर्ण स्वस्थ बनाने के लिए, क्योंकि मन के भाव उनके यही थे कि सबका कल्याण हो तो वह सब चीजों से ऊपर उठकर के केवल कल्याण के लिए ही कार्य करते थे

      तो जब अब आपने इन सब चीजों को धारण करते

      हुए अपने मन को साध लिया, फिर जो रस बना और उस रस से जो रक्त बना, तो उस रक्त की गुणवत्ता अब ऊंची हो गई क्योंकि उसमें वह जो स्पर्म है वह पहले से ही मिला हुआ है, अब क्योंकि आपने लंबे समय से ब्रह्मचर्य को प्रतिष्ठित किया है तो फिर रक्त की गुणवत्ता बनी, और वही रक्त एक एक सैल तक गया और एक एक सैल तक जाकर उसने सही न्यूट्रीशन पहुँचाया और वही फिर जब दिमाग में गया तो दिमाग के लिए वह एक ऐसी मेधा शक्ति और एक ओजस देने वाला बनता है जिससे कि आप अपने जीवन में कुछ अभूतपूर्व कार्य कर सकते हैं।।

      ब्रह्मचर्य के प्रभाव-

      आप उदाहरण देखें, महर्षि विवेकानंद का अगर आप उदाहरण देखते हैं तो उनकी किस तरह की स्मृति उनके विकसित हो गई थी, अगर दयानंद सरस्वती का उदाहरण लेते हैं तो देखो कैसा बल उनके शरीर में आ गया था, तो कारण क्या था उसके पीछे कि उन्होंने लंबे समय तक ब्रह्मचर्य का अनुष्ठान किया था जिससे कि शरीर को वह समय मिला कि वह वीर्य को रक्त के साथ मिला सके।।

      ये एकदम से नहीं मिलता है, कुछ समय तक तो वह एक जगह पर स्टोर रहता है, उसके बाद उसमें एक ऊर्जा विकसित होती है, उसके बाद जा करके वह हमारे शरीर का हिस्सा बनता है, इसलिए पहले ब्रह्मचर्य का अनुष्ठान कराया जाता था, वैसी शिक्षा दी जाती थी, हमारी वैदिक परंपरा में गुरुकुल होते थे, उनका यही विधान था, गुरुकुल में विद्यार्थी जो होता था, उसमें उस तरह के संस्कार ही विकसित नहीं होते थे जिससे कि वह कुमार्गगामी हो वह पूरी तरह से एकाग्र रहता था और पच्चीस वर्ष, बीस वर्ष तक उसे ऐसे ही रखा जाता था।।

      अब पच्चीस वर्ष तक क्या होता है, कि हमारे दिमाग की जो फ्रंटल कोर्टेक्स होती हैं, उनका पूरा विकास हो जाता है और जो फ्रंटल कोर्टेक्स होती है, यही हमारे दिमाग को विकसित करने में, हमारी पर्सनैलिटी को डेवलप करने के लिए, हमारे अंदर कॉन्फिडेंस को बूस्ट करने के लिए, हमारी स्मृति को विकसित करने के लिए, हमें एक सफल व्यक्ति बनाने के लिए उत्तरदाई होती है, तो हमने वहीं पर काम किया और वहीं से हमने अपने आपको पूरी तरह से साध लिया।।

      तो यही कारण था कि गुरुकुल परंपरा जब तक थी, तब तक इस प्रकार के ऋषियों ने, ऐसे विद्वानों ने, ऐसे प्रचंड योग्यताओं के धनी व्यक्तियों ने जन्म लिया और इस मानव जाति का कल्याण किया और उन्हीं के किए गए कार्यों के कारण ही हम अपने आपको सुरक्षित अनुभव करते हैं, उन्हीं की वजह से ही हमारी संस्कृति आज भी जीवित है ऐसा हम समझ सकते हैं।।

      आज हम बहुत सारी ऐसी आदत में पड़े हुए हैं कि हम अपने आप को थोड़ा सा साधते है, लेकिन कुछ समय बाद फिर से बहुत सारे कारण उनके पास आ जाते हैं और वह फिर से उसी मार्ग पर आगे बढ़ने लगते हैं, कारण क्या है कि बहुत सुलभ हो गई हैं चीजें, अब अगर आप टीवी खोलते हैं तो आपको वैसे ही दृश्य मिलते हैं, जो आपको इस तरफ प्रेरित करेंगे, आप फोन चलाते हैं, भले ही आप अच्छा भी कुछ देख रहे हैं लेकिन फिर भी बीच-बीच में आकर के बहुत सारी चीजें आपको भटकाने की कोशिश करती हैं तो इसलिए हमें अब बहुत सजगता की जरूरत पड़ गई है, वह सजगता कैसे आएगी जब इंटरनेट से बचेंगे।।

      डोपामाइन क्या होता है?

      एक बहुत साइंटिफिक रिसर्च भी आज के समय में हो रही है और आज उसे सब लोग स्वीकार कर रहे हैं, वो क्या है कि अगर आप एक पोर्न देखते हैं, जो अश्लील फिल्में आप देखते हैं तो आपके दिमाग से जो सीक्रेशन होता है जो एक हैप्पीनेस वाला हार्मोन होता है डोपामाइन वो बहुत ज्यादा बढ़ जाता है, वह दो गुनी, तीन गुनी मात्रा में निकलने लगता है, अब जब आपके दिमाग में जैसे ही डोपामाइन का सर्कुलेशन बढ़ता है, तीन गुना चार गुना होता है तो आप बड़ा अच्छा अनुभव करते हैं, उन पोर्न फिल्मों को या अश्लील चित्रों को देखते हुए, लेकिन अब आपके दिमाग में डोपामाइन का लेवल है वह एक बार बढ गया तो वह दिमाग के लिए उतना ही मांग करने लगता है कि वह तीन गुना ही मुझे मिले, फिर क्या स्थिति हो जाती है कि जो आपका स्वभाविक जीवन है, उसमें भी आप खुश नहीं रह पाते हैं क्योंकि जब आप एक अश्लील फिल्म देख रहे थे तब तो डोपामाइन बहुत ज्यादा निकला और अब वह कम निकल रहा है तो आपको कोई खुशी अनुभव नहीं हो रही क्योंकि आदत बन चुकी है कि डोपामाइन ज्यादा निकले यानी कि अगर आप इन फिल्मों को देखते हैं तो यह समझ लें कि सीधा-सीधा आप अपनी डोपामाइन के लेवल को डिसबैलेंस कर रहे हैं क्योंकि आप इस तरह की आदत डाल रहे हैं कि वह बहुत ज्यादा मात्रा में क्रिएट हो तभी आपको खुशी का अनुभव कराए, इससे आपका स्वभाविक जीवन प्रभावित हो जाएगा, आप खुश नहीं रह पायेंगे।।

      ब्रह्मचर्य के प्रभाव कब दिखेंगे-

      अगर आपने लगभग दस दिन, पंद्रह दिन ब्रह्मचर्य का अनुष्ठान किया, फिर आप वहां से हट गए, फिर आपने पाँच दिन किया, फिर आप हट गए, फिर आपने पंद्रह दिन किया तो इससे आपको लाभ नहीं होगा, लाभ कब होगा, जब आप दीर्घ काल तक करेंगे क्योंकि इसको समय लगता है, जब हम भोजन ग्रहण करते हैं तो उसको वहां से उस प्रोसेस तक पहुंचने में और एक प्योर फॉर्म में स्पर्म का निर्माण होने में समय लगता है, अब वह बन गया और बनते ही रक्त का हिस्सा नहीं बनेगा, आपके दिमाग तक नहीं चलेगा वह ऊर्ध्व में गमन नहीं करेगा, उसका अधो गमन ही होता रहेगा क्योंकि पूर्ववत आदतें भी बहुत ज्यादा मैटर करती हैं, लेकिन जब लंबे समय तक आप बनाए रखेंगे इस आदत को तो, आप की मेध शक्ति विकसित होंगी और कुछ ही दिनों के बाद लगभग लगभग चालीस दिनों का तो बेसिक टाइम रहता है जो वहां तक बनने का प्रोसेस है, वह होगा और उसके बाद जब वह आपके शरीर का हिस्सा बनेगा, तो साठ, पैंसठ दिन के अंतर्गत ही आप ऐसे अभूतपूर्व अपने जीवन में बदलाव देखेंगे कि आपकी भाषा शैली अच्छी हो जाएगी, आपके शब्दों का उच्चारण अच्छे से होगा जबान लड़खड़ाएगी नहीं, आपकी त्वचा पर चमक दिखाई देगी, आपके बालों पर एक विशेष प्रकार के प्रभाव दिखेंगे और आपके पूरे शरीर में एक ऊर्जा आ जाएगी, किसी भी कार्य को करने में आप अधिक क्षमता के साथ और योग्यता के साथ कर सकेंगे, आपकी स्मृति अच्छी हो जाएगी और आप अपने जीवन में अधिक सकारात्मक अनुभव करेंगे, और अपने आप को अब वैचारिक स्तर पर भी एक सही दिशा दे सकेंगे, आपका मन अब भटकेगा नहीं क्योंकि आपने अपनी उन इंद्रियों को अब साध लिया है।।

      तो आप ऐसा समझे कि अगर आपने ब्रह्मचर्य को

      प्रतिष्ठित किया तो केवल आपने शारीरिक लाभ नहीं पहुंचाया है अपने आप को बल्कि आप ने अपने जीवन को दिशा दे दी है, आपने अपनी सभी योग्यताओं का विकास कर लिया है, अब हर एक लक्ष्य आपके लिए सहज और सुलभ हो गया है ऐसा आप मान लें, ऐसा आप अनुभव करेंगे।।

      इसी का नाम ब्रह्मचर्य है-

      इसीलिए इतना जोर देते हुए ब्रह्मचर्य के ऊपर महर्षि पतंजलि ने भी उसको अष्टांग योग के अंतर्गत रखा है क्योंकि उन्हें पता है कि समाधि की भी जो उच्च

      अवस्था है वहां तक पहुंचने के लिए, वहाँ भी इस ब्रह्मचर्य की और इस वीर्य की आवश्यकता होगी।।

      ऐसा आप समझ लें कि हमारी सामान्य इडा और पिंगला नाडियां ही चलती हैं लेकिन सुषुम्ना में अगर आपको ऊर्जा को प्रवाहित करना है तो वह एक लंबी साधना तो है ही, लेकिन उसके लिए जो सबसे ज्यादा जरूरी है वो है ब्रह्मचर्य, और वीर्य ही ऐसा है, उसी से वह एक ऊर्जा जागृत होती है, जिससे की हठ योग में भी सिद्धि प्राप्त होती है तो ऐसे बहुत सारे फैक्ट हैं, ऐसे बहुत सारी साइंटिफिक रिसर्च हैं, ऐसे बहुत सारे हमारे आयुर्वेद, शास्त्रों में बताया गया है, अध्यात्म में बताया गया है जिससे कि स्पष्ट रूप से इस ब्रह्मचर्य की उपयोगिता अनुभव कर सकते हैं।।

      आप अपने जीवन में आप स्वयं देखें, इसे अपने जीवन में प्रयोग करके देखें, अगर आपने उचित प्रकार से एक बार प्रयोग कर लिया तो आपको इतना अच्छा सकारात्मक इसका परिणाम मिलेगा कि आप पुनः पुनः फिर इसी को ही अपने जीवन में बनाए रखने की कोशिश करेंगे, और आप बनाएं ही रखेंगे ऐसे मेरी अपेक्षा भी है और ऐसी मैं ईश्वर से कामना करता हूं।।

      ।। राधे राधे।।

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