ब्रह्मचर्य और अध्यात्म का क्या सम्बन्ध है?
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नमस्कार मित्रों, आज हम बात करने वाले हैं कि ब्रह्मचर्य और आध्यात्मिकता यानी स्प्रिचुएलिटी इन दोनों पक्ष में क्या सम्बन्ध है और दोनों एक दूसरे के ऊपर निर्भर कैसे हैं, इस विषय पर आज हम चर्चा करने वाले हैं।।
कई मित्रों के ऐसे प्रश्न आते रहते हैं, कि हम ब्रह्मचर्य पालन करने का सोच तो लेते हैं, संकल्प तो कर लेते हैं, मगर बाद में हो नहीं पाता, और कुछ भी मन में गलत आने से वो संकल्प टूट जाता है, कोई हस्त क्रिया कर देता है, कोई गंदी वीडियो देख लेता है जिससे फिर उसे नाईट फॉल हो जाता है, मतलब किसी ना किसी तरीके से ब्रह्मचर्य का नाश हो जाता है।।
तो मित्रों, ये मै अपने खुद के अनुभव से कह रहा हूँ कि केवल और केवल आध्यात्मिकता ही एकमात्र ऐसी स्थिति है जिससे ब्रह्मचर्य पालन आसान हो जाता है, कैसे आसान हो जाता है?, अगर मै ये कहूँ कि मन को वश में रखिए, मन को काबू में रखिये, मन में गलत विचार नहीं आने चाहिए, तो कैसे नहीं आएंगे, वो तो आएंगे।।
अब जैसे आप किसी बच्चे से कहो कि बेटा, ये तलवार है, ये चाकू है, ये छुरी है, इसे हाथ मत लगाना तो क्या वो राजी से मानेगा?, अगर बच्चा सड़क पर जा रहा है, तो आप उसे प्यार से नहीं समझाओगे कि इधर आ जाओ, बल्कि खींच कर ले आओगे, क्योंकि आप भी जानते हो कि बच्चा है, अगर वो तेज गति से रोड की तरफ जा रहा है, तो आपके केवल कहने से वापस नहीं आ जाएगा, उसे आपको खींच कर लाना पड़ेगा।।
इसी तरह आपका मन है, सालों तक आपने हस्तमैथुन किया, गंदी वीडियोज देखीं, गंदा संग किया, तो उसका परिणाम तो एक ना एक दिन आएगा, अच्छी आदत का भी आता है और बुरी आदत का भी आता है, परिणाम सबका सामने आता है, तो जिन्होंने सालों तक हस्तमैथुन किया है वो ये सोचते हैं कि वीर्यनाश तो बहुत हो ही गया है, सब कुछ खत्म हो ही गया है, अब अगर ब्रह्मचर्य से कुछ फायदा मिलता है तो पालन कर लेंगे, उनको गारंटी देने वाला चाहिए होता है।।
तो मन में सालों तक अगर गंदा चिंतन चला है, तो गंदे विचार मन में कभी ना कभी आएंगे ही, आप कितना भी प्रयास कर लो, विचारों को आने से थोड़े ही रोक पाओगे क्योंकि सालों साल आपका चिंतन खराब रहा है, अब मन में कुछ विचार आ गया तो उसको रोक तो नहीं सकते ना,कैसे रोकोगे?
अब इसका क्या समाधान हो, तो जैसा मैने ऊपर बताया कि केवल अध्यात्म ही इससे निकलने का मार्ग है, अगर मन कोई गलत विचार चल रहा है तो उसके बिल्कुल अपोजिट, उसके बिल्कुल विपरीत विचार अपने मन में लाएंगे।
यदि आप शास्त्र स्वाध्याय करते हो, अच्छी अच्छी पुस्तकें पढ़ते हो, चाहे जिस ईश्वर में आपकी श्रद्धा है अगर उसका नित्य सुमिरन करते हो, तो आपमें आस्तिकता जागने लगेगी, एक अलग ही शक्ति आपके अंदर आने लगेगी।।
जैसे आप जब महापुरुषों के चरित्र पढ़ेंगे तो सोचेंगे कि कैसे उन्होंने राष्ट्र सेवा में अपना जीवन खपा दिया, कितने कष्ट खुद झेले, और पूरे जीवन परमार्थ किया लेकिन दूसरी तरफ आप हो कि खुद से लड़ नहीं पा रहे हो, गंदी आदत नहीं छोड़ पा रहे हो, हस्तमैथुन आदि क्रियाओं में ही फंसे हुए हो, कहाँ उन महापुरुषों का जीवन, और कहाँ आपका जीवन है।।
अरे भाई आपको सुधारने के लिए कोई दूसरा थोड़ी आएगा, कोई दूसरा थोड़े ही आपका हस्तमैथुन छुड़वाने आएगा, कोई दूसरा आके आपका स्वप्नदोष ठीक नहीं करेगा, आपको खुद को ही सुधारना है, आपको खुद को अगर बचना है तो थोड़ा संभल जाना पड़ेगा।।
अब जब आप अध्यात्म की तरफ बढोगे तो धीरे धीरे अच्छी बातें आपके मन में आना शुरु हो जाएंगी, अच्छे विचार आना शुरु हो जाएंगे, क्योंकि आपका मन एक मोबाइल जैसा नहीं है कि गलत विचार भरे हैं तो डिलीट बटन प्रेस करो सब ख़त्म, ऐसा नहीं है, गलत विचार अगर खत्म करने हैं तो उसके ठीक विपरीत यानी अध्यात्म की तरफ आगे बढ़ना होगा, जैसे जैसे आप अध्यात्म की तरफ आगे बढोगे, वैसे वैसे अच्छे विचार आपके मन में आते जाएंगे और गलत विचार स्वतः ही ख़त्म होते चले जाएंगे।।
और लास्ट में आपको अनुभूति होगी, ये मै नहीं कह रहा हूँ, आपको स्वयं ही ये अनुभूति होगी कि वास्तव में असली जीवन तो ये है, मुझे ऐसे जीना चाहिए था, मै कितनी खराब जिंदगी जी रहा था उस वक्त, और शायद मै ऐसे जी लिया होता, अगर कुछ साल पहले ही मुझे ब्रह्मचर्य की महत्ता समझ आ गई होती तो मेरा जीवन कितना धन्य हो गया होता
मगर फिर भी अभी समय नहीं निकला है, आपको समझ आ गया है तो इस मार्ग पर चलना शुरु कर दीजिए, आपके लिए गोल्डन चान्स है, अपना जीवन बदलिए।।
और यदि अभी आपने ये समय गँवा दिया तो आने वाला समय, बहुत ही बदतर, बहुत ही खतरनाक होगा आपके लिए, ये आप सोच लीजिए।।
तो अच्छी पुस्तकों का आपको स्वाध्याय करना है, शास्त्रों का अध्ययन करना है, महापुरुषों की जीवनी पढ़नी है, क्योंकि हर शास्त्र में चाहें आप किसी भी भगवान में मानते हो, संयमित जीवन और ब्रह्मचर्य का उल्लेख मिलता है, ये तो केवल राक्षसों में नहींं मिलता क्योंकि उनका भोजन भी तामसिक होता है, महापुरुषों और देवताओं में ये दुर्गुण नहीं पाए जाते।।
अब बहुत से बंधु कहते हैं कि हम खुद को रोक नहीं पाते हैं,कैसे रोकें?, अरे ये कैसे रोकें का क्या मतलब है भाई, तुम खुद को बचाना चाह रहे हो पर बचा नहीं पा रहे हो, जब तुम खुद को ही नहीं बचा पा रहे तो अपने परिवार की रक्षा कैसे करोगे?, अपने परिवार का भरण पोषण कैसे कर सकोगे?, यदि आपने खुद को ही नहीं बचाया फिर दुसरों के लिए कुछ करने की क्या उम्मीद कर सकते हो खुद से?, कुछ नहीं कर सकते।।
तो अपने आप को बदलिए, अपना जीवन स्तर सुधारिए, जब आपका जीवन बदलने लगेगा तो दूसरों का जीवन तो ऑटोमेटिक ही बदल सकते हो।।
कोई भी पुस्तक आपको व्याभिचारी, दुष्ट प्रवृत्ति का नहीं बनाएगी, हर पुस्तक में ब्रह्मचर्य का, संयमित जीवन का वर्णन है, हर शास्त्र में मित्र कैसा हो, पत्नी कैसी हो, पति कैसा हो, पुत्र कैसा हो सबकी मर्यादाओं का वर्णन है और शास्त्रों में वर्णित धर्म की मर्यादाओं को जो लांघते हैं वही लास्ट में दर दर की ठोकरें खाते हैं, वही भटकते फिरते हैं, और जो अपने धर्म के अनुसार, अपने शास्त्रों की मर्यादाओं के अनुसार चलते हैं वही उन्नति करते चले जाते हैं, इसलिए आधुनिकता के साथ साथ अध्यात्म पर भी पकड़ बनानी जरूरी है।।
क्योंकि साइंस भी आप तभी समझ पाएंगे जब आपके माइंड में वो पावर हो, आपकी मेमोरी तीक्ष्ण हो पर अगर आपका दिमाग ही ठीक से नहीं चल रहा है तो आधुनिकता किस काम की रह जाएगी।।
तो हमारे कहने का मतलब बस इतना ही है कि शास्त्र पढ़िए, महापुरुषों की जीवनी पढ़िए, क्योंकि जब आप शास्त्रों को पढ़ेंगे तो आप जानेंगे कि महापुरुषों ने कैसे आचरण किए, आप किस लिए इस दुनिया में आए हो, आपका लक्ष्य क्या है, आपको क्या करना है और आप किस तरह अपना जीवन बर्बाद कर रहे हो।।
तो यदि आप धर्म से थोड़े से भी जुड़ेंगे, अध्यात्मिकता से थोड़े से भी जुड़ेंगे तो सब जान जाएंगे, फिर आनंद अंदर से ही आपके फूटने लगेगा, अंदर से प्रसन्नता आएगी, फिर किसी काम में आप पीछे नहीं रहोगे, कोई भी कार्य सामने आ जाए आपके अंदर भय नहीं रहेगा, डर नहीं रह जाएगा।।
जब आपने अपनी प्राण ऊर्जा को संभाल लिया है, उसका संचय कर लिया है फिर आपको कोई नीचे नहीं गिरा सकता,कोई आपका बाल भी बांका नहीं कर सकता।।
तो आप से एक बार फिर यही कहना है कि शास्त्र स्वाध्याय कीजिए, अध्यात्म से जुड़िये, धर्म से जुड़िये क्योंकि बिना अध्यात्म ब्रह्मचर्य सम्भव नहीं है।।
।।राधे राधे।।
Bahut Sundar ❤️
Aapne Bahut Accha Likha Hai Bina Dharm Aur Aadhyatm Se Jude Koi Akhand Brahmachari Nahi Ban Sakta .
ब्रह्मचर्य और अध्यात्म का गहरा संबंध है। ब्रह्मचर्य का अर्थ है इंद्रियों को वश में करना और अपनी ऊर्जा को आध्यात्मिक विकास की ओर मोड़ना।
ब्रह्मचर्य के अभ्यास से व्यक्ति को कई आध्यात्मिक लाभ हो सकते हैं:
1. *मन की शांति*: ब्रह्मचर्य के अभ्यास से मन शांत और एकाग्र होता है, जिससे आध्यात्मिक अनुभवों की प्राप्ति होती है।
2. *ऊर्जा का संचयन*: ब्रह्मचर्य के अभ्यास से व्यक्ति की ऊर्जा संचित होती है, जिससे वह आध्यात्मिक अभ्यासों में अधिक समय और ऊर्जा लगा सकता है।
3. *इंद्रियों का नियंत्रण*: ब्रह्मचर्य के अभ्यास से व्यक्ति की इंद्रियाँ नियंत्रित होती हैं, जिससे वह आध्यात्मिक मार्ग पर अधिक स्थिर रहता है।
4. *आत्म-ज्ञान*: ब्रह्मचर्य के अभ्यास से व्यक्ति को आत्म-ज्ञान की प्राप्ति होती है, जिससे वह अपने जीवन के उद्देश्य और मूल्यों को समझने में सक्षम होता है।
अध्यात्म के संदर्भ में, ब्रह्मचर्य का अभ्यास व्यक्ति को निम्नलिखित आध्यात्मिक मूल्यों को विकसित करने में मदद करता है:
1. *निर्वैरता*: ब्रह्मचर्य के अभ्यास से व्यक्ति निर्वैरता की भावना विकसित करता है, जिससे वह दूसरों के प्रति अधिक सहानुभूति और करुणा का अनुभव करता है।
2. *निष्कामता*: ब्रह्मचर्य के अभ्यास से व्यक्ति निष्कामता की भावना विकसित करता है, जिससे वह अपने कार्यों में अधिक निस्वार्थता और समर्पण का अनुभव करता है।
3. *आत्म-निरीक्षण*: ब्रह्मचर्य के अभ्यास से व्यक्ति आत्म-निरीक्षण की क्षमता विकसित करता है, जिससे वह अपने विचारों, भावनाओं और कार्यों को अधिक स्पष्टता से देख सकता है।
इस प्रकार, ब्रह्मचर्य और अध्यात्म का संबंध बहुत गहरा है। ब्रह्मचर्य के अभ्यास से व्यक्ति आध्यात्मिक मूल्यों को विकसित कर सकता है और अपने जीवन को अधिक अर्थपूर्ण और सार्थक बना सकता है।
Sidha sa sambandh hai!
Jo Adhyatmik hoga uska brahmacharya lamba chalega, wo khudko ishwar ke prati samarpit kar dega jisse uske paas na to , uul-jalool sochne ka samay hoga aur na hee galat kriya mai sammilit hone ka.
Jitne bhi logo ko suru suru mai brahmacharya ke bare mai pata chalta unme se adhiktar log aadhyatmik nahi hai( ishi karan galat kriya unpe haavi ho jati hai aur apna sarir nast kar baithte hai.)
Fir sochte hai ki Brahmacharya ka palan kar mai sab theek kr loonga , isi soch ke karan unka brahmacharya keval kuch dino ya mahino mai fir nast ho jata hai.
Mai apna anuvaw batau to , adhaytmik banane ke sabse aasan tarika hai subah nahane ke baad surya devta ko jal arpan karo aur apne ghar ke mandir mai ek deepak aur agarbatti jaroor jalao [Agarbatti ki sugandh mai wo jadoo hai jo apko positivity se bhar degi ] . kisi sugandh(Agarbatti) ke sath agar dhyan lagane ki kosis ki jaye to dhyan saralta se lag jata hai.
Aadhyatmik bano-> Naam jap karo-> Bure bicharo se mukti pao-> Brahnacharya ko safal banao.
Dhanyabad🙏
ब्रह्मचर्य और अध्यात्म का संबंध बहुत गहरा है:
अध्यात्म में ब्रह्मचर्य को बहुत महत्व दिया जाता है. ब्रह्मचर्य से आत्मा को शांति, आनंद, प्रेम, ज्ञान, शक्ति, तेज, ओज, और विभूति मिलती है.
ब्रह्मचर्य से आत्मा को अपने असली सुख, शांति, और मुक्ति का मार्ग मिलता है.
ब्रह्मचर्य से व्यक्ति अपने यौन इच्छाओं को संयमित कर सकता है.
ब्रह्मचर्य से व्यक्ति की आत्मा शुद्ध होती है और मन से क्रोध, छल-कपट, और लालच कम होता है.
ब्रह्मचर्य से व्यक्ति का मन सांसारिक चीज़ों की ओर आकर्षित नहीं होता.
ब्रह्मचर्य व्यक्ति को सर्वोच्च आत्मा से मिलन की ओर ले जाता है.
ब्रह्मचर्य से ज्ञान-शक्ति और क्रिया-शक्ति में वृद्धि होती है.
ब्रह्मचर्य से व्यक्ति को आत्म-संयम का अभ्यास होता है, जिससे वह सीखने, विचार, वचन, और कर्म में गुरु पर ध्यान देने लगता है.
ब्रह्मचर्य से व्यक्ति को वेदों और उपनिषदों में सन्निहित सत्य की खोज करने में मदद मिलती है.
ब्रह्मचर्य को अलग-अलग प्रकारों में बांटा गया है: सामान्य ब्रह्मचर्य, आध्यात्मिक ब्रह्मच.