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ब्रह्मचर्य और आध्यात्मिकता

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3 Questions

Brahmacharya App: Self-Control, Peace, and Success Latest Questions

Vishnu Gupta
  • 6
Vishnu GuptaYogi
Asked: January 14, 2025In: ब्रह्मचर्य और आध्यात्मिकता

भगवत गीता के अध्याय-2 से आप को क्या सीख मिलती है?

  • 6

  1. JeetBhakat
    JeetBhakat Vidyarthi (Scholar)
    Added an answer on January 14, 2025 at 3:24 pm

    भागवत गीता के दूसरे अध्याय से हमें ये सीख मिलती है कि जिस व्यक्ति न मन और इंद्रियों को जीत लिया उनका ईश्वर को प्राप्त होने का पथ सरल हो जाता है, हमें सिर्फ अपने कर्मों पर और फल ईश्वर पर चोर देना चाहिए| भगवान श्री कृष्ण ये भी समझaते हैं कि आत्मा कभी मरती नहीं सिर्फ एक शरीर से दूसरे शरीर को जाती है |

    भागवत गीता के दूसरे अध्याय से हमें ये सीख मिलती है कि जिस व्यक्ति न मन और इंद्रियों को जीत लिया उनका ईश्वर को प्राप्त होने का पथ सरल हो जाता है, हमें सिर्फ अपने कर्मों पर और फल ईश्वर पर चोर देना चाहिए| भगवान श्री कृष्ण ये भी समझaते हैं कि आत्मा कभी मरती नहीं सिर्फ एक शरीर से दूसरे शरीर को जाती है |

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Vishnu Gupta
  • 1
Vishnu GuptaYogi
Asked: January 11, 2025In: ब्रह्मचर्य और आध्यात्मिकता

अठारह दिन अठारह अध्याय

  • 1

  1. Vishnu Gupta
    Vishnu Gupta Yogi
    Added an answer on January 11, 2025 at 3:15 pm

    अध्याय-1 कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्य निरीक्षण धृतराष्ट्र ने कहा: हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा पांडु के पुत्रों ने क्या किया? संजय ने कहा: हे राजन! पांडुपुत्रों द्वारा सेना की रचना देखकर राजा दुर्योधन अपने गुरु के पास गया और उसने ये शब्द कहे: "हे आचार्Read more

    अध्याय-1 कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्य निरीक्षण

    धृतराष्ट्र ने कहा: हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा पांडु के पुत्रों ने क्या किया?

    संजय ने कहा: हे राजन! पांडुपुत्रों द्वारा सेना की रचना देखकर राजा दुर्योधन अपने गुरु के पास गया और उसने ये शब्द कहे:

    “हे आचार्य! पांडुपुत्रों की विशाल सेना को देखें, जिसे आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपद के पुत्र ने इतने कौशल से व्यवस्थित किया है। इस सेना में भीम तथा अर्जुन के समान युद्ध करने वाले अनेक वीर धनुर्धर हैं। यथा, महारथी युयुधान, विराट तथा द्रुपद। इनके साथ ही धृष्टकेतु, चेकितान, काशिराज, पुरूजित, कुंतीभोज तथा शैव्य जैसे महान शक्तिशाली योद्धा भी हैं।

    पराक्रमी युधामन्यु, अत्यंत शक्तिशाली उत्तमौजा, सुभद्रा का पुत्र तथा द्रौपदी के पुत्र—यह सभी महारथी हैं। किंतु हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! आपकी सूचना के लिए मैं अपनी सेना के उन नायकों के विषय में बताना चाहूंगा, जो मेरी सेना को संचालित करने में विशेष रूप से निपुण हैं। मेरी सेना में स्वयं आप, भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य, अश्वथामा, विकर्ण तथा सोमदत्त का पुत्र भूरीश्रवा आदि हैं, जो युद्ध में सदैव विजयी रहे हैं।

    और ऐसे अनेक वीर भी हैं, जो मेरे लिए अपना जीवन त्याग करने के लिए उद्यत हैं। वे विविध प्रकार के हथियारों से सुसज्जित हैं और युद्ध विद्या में निपुण हैं। हमारी शक्ति अपरिमेय है और हम सब पितामह द्वारा भली भाँति संरक्षित हैं, जबकि पांडवों की शक्ति भीम द्वारा भली भाँति संरक्षित होकर भी सीमित है।

    अतः सैन्यव्यूह में अपने-अपने मोर्चों पर खड़े रहकर आप सभी भीष्म पितामह को पूरी-पूरी सहायता दें।”

    तब कुरुवंश के वयोवृद्ध, परम प्रतापी एवं वृद्ध पितामह ने सिंह गर्जन की सी ध्वनि करने वाले अपने शंख को उच्च स्वर में बजाया, जिससे दुर्योधन को हर्ष हुआ। तत्पश्चात शंख, नगाड़े, बिगुल, तुरही तथा सिंह सहसा एक साथ बज उठे। वह समवेत स्वर अत्यंत कोलाहलपूर्ण था।

    दूसरी ओर, श्वेत घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले विशाल रथ पर आसीन कृष्ण तथा अर्जुन ने अपने-अपने दिव्य शंख बजाए। भगवान कृष्ण ने अपना पांचजन्य शंख बजाया, अर्जुन ने देवदत्त शंख तथा अति भोजी एवं अति मानवीय कार्य करने वाले भीम ने पौंड्र नामक भयंकर शंख बजाया।

    हे राजन! कुंतीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अपना अनंत विजय नामक शंख बजाया, तथा नकुल और सहदेव ने सुघोष एवं मणिपुष्पक शंख बजाए। महान धनुर्धर काशिराज, परम योद्धा शिखंडी, धृष्टद्युम्न, विराट, अजेय सात्यकि, द्रुपद, द्रौपदी के पुत्र तथा सुभद्रा के महाबाहु पुत्र आदि सब ने अपने-अपने शंख बजाए।

    इन विभिन्न शंखों की ध्वनि कोलाहलपूर्ण बन गई, जो आकाश तथा पृथ्वी को शब्दायमान करती हुई धृतराष्ट्र के पुत्रों के हृदय को विदीर्ण करने लगी। उस समय, हनुमान से अंकित ध्वजा लगे रथ पर आसीन पांडुपुत्र अर्जुन अपना धनुष उठाकर तीर चलाने के लिए उद्यत हुआ।

    हे राजन! धृतराष्ट्र के पुत्रों को व्यूह में खड़ा देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से यह वचन कहे:
    “अर्जुन ने कहा: हे अच्युत! कृपा करके मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच ले चलिए, जिससे मैं यहाँ उपस्थित युद्ध की अभिलाषा रखने वालों को और शस्त्रों की इस महान परीक्षा में जिनसे मुझे संघर्ष करना है, उन्हें देख सकूँ। मुझे उन लोगों को देखने दीजिए जो यहाँ पर धृतराष्ट्र के दुर्बुद्धि पुत्र दुर्योधन को प्रसन्न करने की इच्छा से लड़ने के लिए आए हुए हैं।”

    संजय ने कहा: हे भरतवंशी! अर्जुन द्वारा इस प्रकार संबोधित किए जाने पर भगवान कृष्ण ने दोनों दलों के बीच में उस उत्तम रथ को लाकर खड़ा कर दिया। भीष्म, द्रोण तथा विश्वभर के अन्य समस्त राजाओं के सामने भगवान ने कहा:
    “हे पार्थ! यहाँ पर एकत्र सारे कुरुओं को देखो।”

    अर्जुन ने वहाँ पर दोनों पक्षों की सेनाओं के मध्य में अपने चाचा, ताऊ, पितामह, गुरुओं, मामा, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों, मित्रों, ससुर और शुभचिंतकों को भी देखा। जब कुंतीपुत्र अर्जुन ने मित्रों तथा संबंधियों की इन विभिन्न श्रेणियों को देखा, तो वह करुणा से अभिभूत हो गया और इस प्रकार बोला:

    “अर्जुन ने कहा: हे कृष्ण! इस प्रकार युद्ध की इच्छा रखने वाले अपने मित्रों तथा संबंधियों को अपने समक्ष उपस्थित देखकर मेरे शरीर के अंग काँप रहे हैं और मेरा मुख सूख रहा है। मेरा सारा शरीर काँप रहा है, मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं। मेरा धनुष मेरे हाथ से सरक रहा है और मेरी त्वचा जल रही है।

    मैं यहाँ अब और अधिक खड़ा रहने में असमर्थ हूँ। मैं अपने को भूल रहा हूँ और मेरा सिर चकरा रहा है। हे कृष्ण! मुझे तो केवल अमंगल के कारण दिख रहे हैं।

    हे कृष्ण! इस युद्ध में अपने ही स्वजनों का वध करने से न तो मुझे कोई अच्छाई दिखती है और न ही मैं उससे किसी प्रकार की विजय, राज्य या सुख की इच्छा रखता हूँ। हे गोविंद! हमें राज्य, सुख अथवा इस जीवन से क्या लाभ? क्योंकि जिन सारे लोगों के लिए हम उन्हें चाहते हैं, वे ही इस युद्धभूमि में खड़े हैं।

    हे मधुसूदन! जब गुरुजन, पितृगण, पुत्रगण, पितामह, मामा, ससुर, पौत्रगण, साले तथा अन्य सारे संबंधी अपना-अपना धन एवं प्राण देने के लिए तत्पर हैं और मेरे समक्ष खड़े हैं, तो फिर मैं इन सबको क्यों मारना चाहूँगा, भले ही वे मुझे क्यों न मार डालें।

    हे जीवों के पालक! मैं इन सबों से लड़ने को तैयार नहीं, भले ही बदले में मुझे तीनों लोक क्यों न मिलते हों, इस पृथ्वी की तो बात ही छोड़ दें। भला धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें कौन-सी प्रसन्नता मिलेगी? यदि हम ऐसे आततायियों का वध करते हैं, तो हम पर पाप चढ़ेगा।

    अतः यह उचित नहीं होगा कि हम धृतराष्ट्र के पुत्रों तथा उनके मित्रों का वध करें। हे लक्ष्मीपति कृष्ण! इससे हमें क्या लाभ होगा? और अपने ही कुटुंबियों को मारकर हम किस प्रकार सुखी हो सकते हैं?

    हे जनार्दन! यद्यपि लोभ से अविभूत चित्त वाले ये लोग अपने परिवार को मारने या अपने मित्रों से द्रोह करने में कोई दोष नहीं देखते, किंतु हम लोग जो परिवार के विनष्ट करने में अपराध देख सकते हैं, ऐसे पापकर्मों में क्यों प्रवृत्त हों?

    कुल का नाश होने पर सनातन कुलपरंपरा नष्ट हो जाती है और इस तरह शेष कुल भी अधर्म में प्रवृत्त हो जाता है। हे कृष्ण! जब कुल में अधर्म प्रमुख हो जाता है, तो कुल की स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं और स्त्रीत्व के पतन से, हे वृष्णवंशी! अवांछित संतानें उत्पन्न होती हैं।

    और अवांछित संतानों की वृद्धि से निश्चय ही परिवार के लिए तथा पारिवारिक परंपरा को विनष्ट करने वालों के लिए नारकीय जीवन उत्पन्न होता है। ऐसे पतित कुलों के पुरखे गिर जाते हैं, क्योंकि उन्हें जल तथा पिंडदान देने की क्रियाएँ समाप्त हो जाती हैं।

    जो लोग कुलपरंपरा को विनष्ट करते हैं और इस तरह अवांछित संतानों को जन्म देते हैं, उनके दुष्कर्म से समस्त प्रकार की सामुदायिक योजनाएँ तथा पारिवारिक कल्याण कार्य विनष्ट हो जाते हैं।

    हे प्रजापालक कृष्ण! मैंने गुरु परंपरा से सुना है कि जो लोग कुलधर्म का विनाश करते हैं, वे सदैव नरक में वास करते हैं। ओहो! कितनी आश्चर्य की बात है कि हम सब जघन्य पापकर्म करने के लिए उद्यत हो रहे हैं। राज्य, सुख भोगने की इच्छा से प्रेरित होकर हम अपने ही संबंधियों को मारने पर तुले हैं।

    यदि शस्त्रधारी धृतराष्ट्र के पुत्र मुझे निहत्थे तथा रणभूमि में प्रतिरोध न करने वाले को मारें, तो यह मेरे लिए श्रेयस्कर होगा।”

    संजय ने कहा: युद्धभूमि में इस प्रकार कहकर अर्जुन ने अपना धनुष तथा बाण एक ओर रख दिया और शोक संतप्त चित्त से रथ के आसन पर बैठ गया।

    ।।बोलिये श्री कृष्ण चंद्र भगवान की जय।।

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Vishnu Gupta
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Vishnu GuptaYogi
Asked: January 6, 2025In: ब्रह्मचर्य और आध्यात्मिकता

ब्रह्मचर्य और अध्यात्म किस प्रकार एक दूसरे से सम्बन्धित हैं?, समझाइये।।

  • 0

  1. Ranjan Ghosh
    Ranjan Ghosh
    Added an answer on April 29, 2025 at 11:59 am

    Adhyatma aur naam jap ke Bina Brahmacharya sambhar nahin hain...Aaj Kal jo mahaul hain use.to koshish bhi sambhar nahin hain... Ultimate aim to Bhagvan hi hain, rasta bhi wo hain aur manzil bhi....Sangsar mein itni chana chanda hain ki hum kho hi jaenge. Naam jap.karte.rahiye aur brahmacharya par laRead more

    Adhyatma aur naam jap ke Bina Brahmacharya sambhar nahin hain…Aaj Kal jo mahaul hain use.to koshish bhi sambhar nahin hain… Ultimate aim to Bhagvan hi hain, rasta bhi wo hain aur manzil bhi….Sangsar mein itni chana chanda hain ki hum kho hi jaenge.

    Naam jap.karte.rahiye aur brahmacharya par laage rahiye

     

    Hare Krishna

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  • Ranjan Ghosh
    Ranjan Ghosh added an answer Adhyatma aur naam jap ke Bina Brahmacharya sambhar nahin hain...Aaj… April 29, 2025 at 11:59 am
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    Santos kumar added an answer Bro bahut hi galat hai isko aasani se khatm kar… February 5, 2025 at 2:41 am
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    JeetBhakat added an answer भागवत गीता के दूसरे अध्याय से हमें ये सीख मिलती… January 14, 2025 at 3:24 pm

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