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Vishnu Gupta

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Brahmacharya App: Self-Control, Peace, and Success Latest Questions

Vishnu Gupta
  • 6
Vishnu GuptaYogi
Asked: January 14, 2025In: ब्रह्मचर्य और आध्यात्मिकता

भगवत गीता के अध्याय-2 से आप को क्या सीख मिलती है?

  • 6

  1. JeetBhakat
    JeetBhakat Vidyarthi (Scholar)
    Added an answer on January 14, 2025 at 3:24 pm

    भागवत गीता के दूसरे अध्याय से हमें ये सीख मिलती है कि जिस व्यक्ति न मन और इंद्रियों को जीत लिया उनका ईश्वर को प्राप्त होने का पथ सरल हो जाता है, हमें सिर्फ अपने कर्मों पर और फल ईश्वर पर चोर देना चाहिए| भगवान श्री कृष्ण ये भी समझaते हैं कि आत्मा कभी मरती नहीं सिर्फ एक शरीर से दूसरे शरीर को जाती है |

    भागवत गीता के दूसरे अध्याय से हमें ये सीख मिलती है कि जिस व्यक्ति न मन और इंद्रियों को जीत लिया उनका ईश्वर को प्राप्त होने का पथ सरल हो जाता है, हमें सिर्फ अपने कर्मों पर और फल ईश्वर पर चोर देना चाहिए| भगवान श्री कृष्ण ये भी समझaते हैं कि आत्मा कभी मरती नहीं सिर्फ एक शरीर से दूसरे शरीर को जाती है |

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Vishnu Gupta
  • 1
Vishnu GuptaYogi
Asked: January 11, 2025In: ब्रह्मचर्य और आध्यात्मिकता

अठारह दिन अठारह अध्याय

  • 1

  1. Vishnu Gupta
    Vishnu Gupta Yogi
    Added an answer on January 11, 2025 at 3:15 pm

    अध्याय-1 कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्य निरीक्षण धृतराष्ट्र ने कहा: हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा पांडु के पुत्रों ने क्या किया? संजय ने कहा: हे राजन! पांडुपुत्रों द्वारा सेना की रचना देखकर राजा दुर्योधन अपने गुरु के पास गया और उसने ये शब्द कहे: "हे आचार्Read more

    अध्याय-1 कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्य निरीक्षण

    धृतराष्ट्र ने कहा: हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा पांडु के पुत्रों ने क्या किया?

    संजय ने कहा: हे राजन! पांडुपुत्रों द्वारा सेना की रचना देखकर राजा दुर्योधन अपने गुरु के पास गया और उसने ये शब्द कहे:

    “हे आचार्य! पांडुपुत्रों की विशाल सेना को देखें, जिसे आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपद के पुत्र ने इतने कौशल से व्यवस्थित किया है। इस सेना में भीम तथा अर्जुन के समान युद्ध करने वाले अनेक वीर धनुर्धर हैं। यथा, महारथी युयुधान, विराट तथा द्रुपद। इनके साथ ही धृष्टकेतु, चेकितान, काशिराज, पुरूजित, कुंतीभोज तथा शैव्य जैसे महान शक्तिशाली योद्धा भी हैं।

    पराक्रमी युधामन्यु, अत्यंत शक्तिशाली उत्तमौजा, सुभद्रा का पुत्र तथा द्रौपदी के पुत्र—यह सभी महारथी हैं। किंतु हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! आपकी सूचना के लिए मैं अपनी सेना के उन नायकों के विषय में बताना चाहूंगा, जो मेरी सेना को संचालित करने में विशेष रूप से निपुण हैं। मेरी सेना में स्वयं आप, भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य, अश्वथामा, विकर्ण तथा सोमदत्त का पुत्र भूरीश्रवा आदि हैं, जो युद्ध में सदैव विजयी रहे हैं।

    और ऐसे अनेक वीर भी हैं, जो मेरे लिए अपना जीवन त्याग करने के लिए उद्यत हैं। वे विविध प्रकार के हथियारों से सुसज्जित हैं और युद्ध विद्या में निपुण हैं। हमारी शक्ति अपरिमेय है और हम सब पितामह द्वारा भली भाँति संरक्षित हैं, जबकि पांडवों की शक्ति भीम द्वारा भली भाँति संरक्षित होकर भी सीमित है।

    अतः सैन्यव्यूह में अपने-अपने मोर्चों पर खड़े रहकर आप सभी भीष्म पितामह को पूरी-पूरी सहायता दें।”

    तब कुरुवंश के वयोवृद्ध, परम प्रतापी एवं वृद्ध पितामह ने सिंह गर्जन की सी ध्वनि करने वाले अपने शंख को उच्च स्वर में बजाया, जिससे दुर्योधन को हर्ष हुआ। तत्पश्चात शंख, नगाड़े, बिगुल, तुरही तथा सिंह सहसा एक साथ बज उठे। वह समवेत स्वर अत्यंत कोलाहलपूर्ण था।

    दूसरी ओर, श्वेत घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले विशाल रथ पर आसीन कृष्ण तथा अर्जुन ने अपने-अपने दिव्य शंख बजाए। भगवान कृष्ण ने अपना पांचजन्य शंख बजाया, अर्जुन ने देवदत्त शंख तथा अति भोजी एवं अति मानवीय कार्य करने वाले भीम ने पौंड्र नामक भयंकर शंख बजाया।

    हे राजन! कुंतीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अपना अनंत विजय नामक शंख बजाया, तथा नकुल और सहदेव ने सुघोष एवं मणिपुष्पक शंख बजाए। महान धनुर्धर काशिराज, परम योद्धा शिखंडी, धृष्टद्युम्न, विराट, अजेय सात्यकि, द्रुपद, द्रौपदी के पुत्र तथा सुभद्रा के महाबाहु पुत्र आदि सब ने अपने-अपने शंख बजाए।

    इन विभिन्न शंखों की ध्वनि कोलाहलपूर्ण बन गई, जो आकाश तथा पृथ्वी को शब्दायमान करती हुई धृतराष्ट्र के पुत्रों के हृदय को विदीर्ण करने लगी। उस समय, हनुमान से अंकित ध्वजा लगे रथ पर आसीन पांडुपुत्र अर्जुन अपना धनुष उठाकर तीर चलाने के लिए उद्यत हुआ।

    हे राजन! धृतराष्ट्र के पुत्रों को व्यूह में खड़ा देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से यह वचन कहे:
    “अर्जुन ने कहा: हे अच्युत! कृपा करके मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच ले चलिए, जिससे मैं यहाँ उपस्थित युद्ध की अभिलाषा रखने वालों को और शस्त्रों की इस महान परीक्षा में जिनसे मुझे संघर्ष करना है, उन्हें देख सकूँ। मुझे उन लोगों को देखने दीजिए जो यहाँ पर धृतराष्ट्र के दुर्बुद्धि पुत्र दुर्योधन को प्रसन्न करने की इच्छा से लड़ने के लिए आए हुए हैं।”

    संजय ने कहा: हे भरतवंशी! अर्जुन द्वारा इस प्रकार संबोधित किए जाने पर भगवान कृष्ण ने दोनों दलों के बीच में उस उत्तम रथ को लाकर खड़ा कर दिया। भीष्म, द्रोण तथा विश्वभर के अन्य समस्त राजाओं के सामने भगवान ने कहा:
    “हे पार्थ! यहाँ पर एकत्र सारे कुरुओं को देखो।”

    अर्जुन ने वहाँ पर दोनों पक्षों की सेनाओं के मध्य में अपने चाचा, ताऊ, पितामह, गुरुओं, मामा, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों, मित्रों, ससुर और शुभचिंतकों को भी देखा। जब कुंतीपुत्र अर्जुन ने मित्रों तथा संबंधियों की इन विभिन्न श्रेणियों को देखा, तो वह करुणा से अभिभूत हो गया और इस प्रकार बोला:

    “अर्जुन ने कहा: हे कृष्ण! इस प्रकार युद्ध की इच्छा रखने वाले अपने मित्रों तथा संबंधियों को अपने समक्ष उपस्थित देखकर मेरे शरीर के अंग काँप रहे हैं और मेरा मुख सूख रहा है। मेरा सारा शरीर काँप रहा है, मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं। मेरा धनुष मेरे हाथ से सरक रहा है और मेरी त्वचा जल रही है।

    मैं यहाँ अब और अधिक खड़ा रहने में असमर्थ हूँ। मैं अपने को भूल रहा हूँ और मेरा सिर चकरा रहा है। हे कृष्ण! मुझे तो केवल अमंगल के कारण दिख रहे हैं।

    हे कृष्ण! इस युद्ध में अपने ही स्वजनों का वध करने से न तो मुझे कोई अच्छाई दिखती है और न ही मैं उससे किसी प्रकार की विजय, राज्य या सुख की इच्छा रखता हूँ। हे गोविंद! हमें राज्य, सुख अथवा इस जीवन से क्या लाभ? क्योंकि जिन सारे लोगों के लिए हम उन्हें चाहते हैं, वे ही इस युद्धभूमि में खड़े हैं।

    हे मधुसूदन! जब गुरुजन, पितृगण, पुत्रगण, पितामह, मामा, ससुर, पौत्रगण, साले तथा अन्य सारे संबंधी अपना-अपना धन एवं प्राण देने के लिए तत्पर हैं और मेरे समक्ष खड़े हैं, तो फिर मैं इन सबको क्यों मारना चाहूँगा, भले ही वे मुझे क्यों न मार डालें।

    हे जीवों के पालक! मैं इन सबों से लड़ने को तैयार नहीं, भले ही बदले में मुझे तीनों लोक क्यों न मिलते हों, इस पृथ्वी की तो बात ही छोड़ दें। भला धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें कौन-सी प्रसन्नता मिलेगी? यदि हम ऐसे आततायियों का वध करते हैं, तो हम पर पाप चढ़ेगा।

    अतः यह उचित नहीं होगा कि हम धृतराष्ट्र के पुत्रों तथा उनके मित्रों का वध करें। हे लक्ष्मीपति कृष्ण! इससे हमें क्या लाभ होगा? और अपने ही कुटुंबियों को मारकर हम किस प्रकार सुखी हो सकते हैं?

    हे जनार्दन! यद्यपि लोभ से अविभूत चित्त वाले ये लोग अपने परिवार को मारने या अपने मित्रों से द्रोह करने में कोई दोष नहीं देखते, किंतु हम लोग जो परिवार के विनष्ट करने में अपराध देख सकते हैं, ऐसे पापकर्मों में क्यों प्रवृत्त हों?

    कुल का नाश होने पर सनातन कुलपरंपरा नष्ट हो जाती है और इस तरह शेष कुल भी अधर्म में प्रवृत्त हो जाता है। हे कृष्ण! जब कुल में अधर्म प्रमुख हो जाता है, तो कुल की स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं और स्त्रीत्व के पतन से, हे वृष्णवंशी! अवांछित संतानें उत्पन्न होती हैं।

    और अवांछित संतानों की वृद्धि से निश्चय ही परिवार के लिए तथा पारिवारिक परंपरा को विनष्ट करने वालों के लिए नारकीय जीवन उत्पन्न होता है। ऐसे पतित कुलों के पुरखे गिर जाते हैं, क्योंकि उन्हें जल तथा पिंडदान देने की क्रियाएँ समाप्त हो जाती हैं।

    जो लोग कुलपरंपरा को विनष्ट करते हैं और इस तरह अवांछित संतानों को जन्म देते हैं, उनके दुष्कर्म से समस्त प्रकार की सामुदायिक योजनाएँ तथा पारिवारिक कल्याण कार्य विनष्ट हो जाते हैं।

    हे प्रजापालक कृष्ण! मैंने गुरु परंपरा से सुना है कि जो लोग कुलधर्म का विनाश करते हैं, वे सदैव नरक में वास करते हैं। ओहो! कितनी आश्चर्य की बात है कि हम सब जघन्य पापकर्म करने के लिए उद्यत हो रहे हैं। राज्य, सुख भोगने की इच्छा से प्रेरित होकर हम अपने ही संबंधियों को मारने पर तुले हैं।

    यदि शस्त्रधारी धृतराष्ट्र के पुत्र मुझे निहत्थे तथा रणभूमि में प्रतिरोध न करने वाले को मारें, तो यह मेरे लिए श्रेयस्कर होगा।”

    संजय ने कहा: युद्धभूमि में इस प्रकार कहकर अर्जुन ने अपना धनुष तथा बाण एक ओर रख दिया और शोक संतप्त चित्त से रथ के आसन पर बैठ गया।

    ।।बोलिये श्री कृष्ण चंद्र भगवान की जय।।

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Vishnu Gupta
  • 1
Vishnu GuptaYogi
Asked: January 11, 2025In: ब्रह्मचर्य का परिचय

ब्रह्मचर्य किनके लिए बहुत कठिन है,और किनके लिए बहुत ही सरल है?

  • 1

  1. Rohit_kumar
    Rohit_kumar Pundit
    Added an answer on January 13, 2025 at 9:57 am

    आज के समय मै ब्रह्मचर्य सबके लिए ही कठिन है , किसी के लिए ज्यादा कठिन तो किसी के लिए कम कठिन।। ऐसे अगर नहीं होता तो आज हमारे चारों तरफ केवल ब्रह्मचारी ही दिखाई देते।। क्या ऐसा है? नहीं , तुम्हारे आस पास 100 लोग में से 10 ने इसका नाम सुना है , केवल नाम हे सुना है। बाकी 5 लोग लोग ये समझते है कि ब्रह्मRead more

    आज के समय मै ब्रह्मचर्य सबके लिए ही कठिन है , किसी के लिए ज्यादा कठिन तो किसी के लिए कम कठिन।। ऐसे अगर नहीं होता तो आज हमारे चारों तरफ केवल ब्रह्मचारी ही दिखाई देते।।

    क्या ऐसा है?

    नहीं , तुम्हारे आस पास 100 लोग में से 10 ने इसका नाम सुना है , केवल नाम हे सुना है। बाकी 5 लोग लोग ये समझते है कि ब्रह्मचर्य का मत केवल शादी न करना है(मै ऐसे लोगों से खूब मिल हूं।) ऐसे लोगों का साथ तुरन्त छोड़ देना , क्योंकि तुम उन्हें कभी भी ब्रह्मचर्य पालन नहीं करवा सकते , उल्टा वो तुम्हे भी पालन नहीं करने देंगे।

    –—•»

    1) मित्र 

    जिनके मित्र का समूह ब्रह्मचर्य पालन नहीं करता , वो खुद भी पालन नहीं कर पाएंगे।

    ऐसे मित्र ढूंढो जो ब्रह्मचर्य पालन करते हो , या फिर अकेले हो जाओ , अपने लक्ष्य को अपना दोस्त बनाओ।

    2) परिवार

    परिवार की बातों मै आओगे तो पालन नहीं कर पाओगे ,

    बेटा और दो रोटी खालों , पेट नहीं भरा होगा अभी (रात को भूख का 25% ही खान। है)

    • सुबह 4 बजे उठने की क्या जरूरत है, सो जाओ ठंड लग जाएगी।

    ये बात मान लोगे तो पालन नहीं कर पाओगे।

    कुछ बातों का विरोध करना पड़ेगा , तभी पालन हो पाएगा।

    3) खाद्य

    “HUNGER IS THE FIRST ELEMENT OF SELF DECIPLINE”

    अगर तुम ये कंट्रोल कर सकते हो कि क्या खाना है, कितना खाना है , तो तुम बाकी चीजें भी कंट्रोल कर लोगे।

    जो लोग अभी भी यही फंसे हुए है कि मांस खाना चाहिए कि नहीं , वो पालन नहीं कर पाएंगे।

    जिसने साग , सब्जियों को अपना मित्र बना लिया वो पालन कर ले जाएगा।

    4) डिसिप्लिन/कंसिस्टेंसी 

    सुबह उठने के बाद और रात सोने से पहले के 2–3 टास्क FIX होने चाहिए , ये नहीं की रोज उठने के बाद आधा घंटा यही सोचने मै लगा दिया कि आज योग पहले करे या व्यायाम।

    जैसे– उठना>शौच>व्यायाम>प्राणायाम , ईश तरह से रोज कुछ चीज है जो वही रहेंगी।

    जो लोग रोज व्यायाम, प्राणायाम करते है वो , लंबे समय तक ब्रह्मचर्य पालन कर सकते है।

    व्यायाम न करना= आलस।

    आलस = व्यायाम न करना।

    आलसी लोग ब्रह्मचर्य पालन नहीं कर पाएंगे ।

     

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Vishnu Gupta
  • 2
Vishnu GuptaYogi
Asked: January 10, 2025

बिना भगवत कृपा के ब्रह्मचर्य में स्थित रह पाना संभव नहीं है, तो आप किस तरह भगवान से प्रार्थना करते हों?, कितनी देर नाम जप करते हों?

  • 2

  1. Rohit_kumar
    Rohit_kumar Pundit
    Added an answer on January 11, 2025 at 5:15 am

    सबसे पहले सुबह उठते ही एक बार "जय श्री राम" ,  नाम लेना भूल न जाऊ इसके लिए मैने लॉक स्क्रीन पे "राम दरबार" का wallpaper लगा रखा है, अलार्म बंद करने के बाद सीधे श्री राम , बजरंगबली के दर्शन हो जाते है। स्नान करने के बाद जब पूजा की तैयारी कर रहा होता हु, तो मन मै राम राम जपता हु , जल अर्पण करके अगरबत्Read more

    सबसे पहले सुबह उठते ही एक बार “जय श्री राम” ,  नाम लेना भूल न जाऊ इसके लिए मैने लॉक स्क्रीन पे “राम दरबार” का wallpaper लगा रखा है, अलार्म बंद करने के बाद सीधे श्री राम , बजरंगबली के दर्शन हो जाते है।

    स्नान करने के बाद जब पूजा की तैयारी कर रहा होता हु, तो मन मै राम राम जपता हु , जल अर्पण करके अगरबत्ती दिखाने तक।

    भोजन का पहला निवाला , प्रभु का नाम लेकर ग्रहण करता हु।(सुबह/दोपहर/शाम)

    संध्या समय(5–5:30) ध्यान करने के बाद , Task 2 ko पूरा करता हु , जिसमें 108 बार नाम जप करना होता है।

    बिस्तर पर जाने के बाद मन मै निरंतर नाम जप , जबतक नींद न आ जाए।

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Vishnu Gupta
  • 0
Vishnu GuptaYogi
Asked: January 9, 2025In: ब्रह्मचर्य का पालन कैसे करें?

ब्रह्मचर्य में आपको कितना सावधान रहना होगा?

  • 0

  1. Rohit_kumar
    Best Answer
    Rohit_kumar Pundit
    Added an answer on January 9, 2025 at 3:58 pm

    ब्रह्मचर्य का पर्याय अगर सावधानियां को कहा जाए तो गलत नहीं होगा।। कब सोना है , कैसे सोना है , कब नहीं सोना , क्या खाना है , क्या नहीं खाना , कितना खाना है , क्या देखना है , क्या नहीं देखना, क्या सुनना है क्या नहीं सुनना , क्या पढ़ें  क्या न पढ़ें।   अनेक प्रकार की सावधानियां रखनी पड़ेंगी , वो भRead more

    ब्रह्मचर्य का पर्याय अगर सावधानियां को कहा जाए तो गलत नहीं होगा।।

    कब सोना है , कैसे सोना है , कब नहीं सोना , क्या खाना है , क्या नहीं खाना , कितना खाना है , क्या देखना है , क्या नहीं देखना, क्या सुनना है क्या नहीं सुनना , क्या पढ़ें  क्या न पढ़ें।

     

    अनेक प्रकार की सावधानियां रखनी पड़ेंगी , वो भी केवल एक दिन या 1 सप्ताह के लिए नहीं , तब तक जब तक आप ब्रह्मचर्य में बने रहना चाहते है।।

    ।।सावधानी हटी दुर्घटना घटी।।

    सावधानी को हम 2 प्रकार मै बांट सकते है।

    1) मानसिक(80%)

    कोई ऐसा विचार का मनन नहीं करना जो बाद में पछतावा का कारण बन जाए। शरीर तो कठपुतली है वही करेगा जो मस्तिष्क उसे संदेश देगा।

    नाम जपो मन पे काबू पाओ।

    2) शारीरिक(20%)

    सीधी बात कहूं तो , शरीर मै एक अंग है जिसे केवल मूत्र त्याग के लिए उपयोग करना है , इसके अलावा कभी गलती से भी इसे स्पर्श नहीं करना , घोर पाप लग जाएगा , 100 दिन की तपस्या भी राख के बराबर हो जाएगी।

    व्यायाम करो शरीर पे काबू पाओ।

    जय श्री राम 🙏

    धन्यवाद 🙏

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Vishnu Gupta
  • 0
Vishnu GuptaYogi
Asked: January 7, 2025In: चुनौतियाँ और समाधान

आप ब्रह्मचर्य रहने के लिए सुबह कौन कौन से योगाभ्यास और प्राणायाम करते हैं?, और कितनी देर करते हैं?

  • 0

  1. Rohit_kumar
    Rohit_kumar Pundit
    Added an answer on January 9, 2025 at 5:43 am

    1) पानी पीने के बाद 10 मिनट टहलता हु। 2) शौच से आकर , दांत धोने के बाद warm up करता हूं। 3)वॉर्म अप मै सबसे पहले शरीर के सारे अंगों को एक एक करके stretch करता हूं, फिर सभी ज्वाइंट हो एक एक करके गोल गोल घुमा हु।(क्रम ईश प्रकार है , हाथ , पैर , घुटना , गर्दन , कमर ) 4) वॉर्म अप के तुरंत बाद पुश अप, 20Read more

    1) पानी पीने के बाद 10 मिनट टहलता हु।

    2) शौच से आकर , दांत धोने के बाद warm up करता हूं।

    3)वॉर्म अप मै सबसे पहले शरीर के सारे अंगों को एक एक करके stretch करता हूं, फिर सभी ज्वाइंट हो एक एक करके गोल गोल घुमा हु।(क्रम ईश प्रकार है , हाथ , पैर , घुटना , गर्दन , कमर )

    4) वॉर्म अप के तुरंत बाद

    • पुश अप, 20 के 3 सेट
    • बैठक (100 नॉर्मल + 20 पैर की एरी उठा के)
    • दंड ( 20 +20 नॉर्मल , 5 राममूर्ति दंड😬)

    5) 2 मिनिट रेस्ट , 10 गहरा सास लिया और फिर प्राणायाम शुरू।

    6) प्राणायाम मै(क्रमानुसार)

    • अनुलोम विलोम 20
    • कपालभाति 100
    • भस्त्रिका 20
    • अंतः प्राणायाम 5
    • वाह्य प्राणायाम 5
    • भ्रामरी 5
    • ओम उच्चारण 5

    7) मै कोई ज्याद आसन नहीं करता हु , बस सर्वांगासन और शवासन ।। समाप्त।।

    8) आधा घंटा रुककर पानी पिता हु , पानी पीने के 10 मिनिट बाद नहा कर सूर्य देवता को जल अर्पण करता हु।

    व्यायाम और प्राणायाम मै कुल मिलकर मुझे 1 घंटा 40 मिनट का समय लग जाता है ,

    40 मिनिट में वॉर्म अप ( व्यायाम से पहले शरीर  को गर्म करना जरूरी होता है , वैसे भी अभी ठंड बहुत बढ़ गई है😱🌨️।) इसलिए समय बढ़ाना पड़ा।

    बाकी समय व्यायाम और प्राणायाम मै ,  मै कुंभक के साथ व्यायाम करता हूं।

    जय श्री राम,🙏

    धन्यवाद 🙏

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Vishnu Gupta
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Vishnu GuptaYogi
Asked: January 6, 2025In: ब्रह्मचर्य और आध्यात्मिकता

ब्रह्मचर्य और अध्यात्म किस प्रकार एक दूसरे से सम्बन्धित हैं?, समझाइये।।

  • 0

  1. Ranjan Ghosh
    Ranjan Ghosh
    Added an answer on April 29, 2025 at 11:59 am

    Adhyatma aur naam jap ke Bina Brahmacharya sambhar nahin hain...Aaj Kal jo mahaul hain use.to koshish bhi sambhar nahin hain... Ultimate aim to Bhagvan hi hain, rasta bhi wo hain aur manzil bhi....Sangsar mein itni chana chanda hain ki hum kho hi jaenge. Naam jap.karte.rahiye aur brahmacharya par laRead more

    Adhyatma aur naam jap ke Bina Brahmacharya sambhar nahin hain…Aaj Kal jo mahaul hain use.to koshish bhi sambhar nahin hain… Ultimate aim to Bhagvan hi hain, rasta bhi wo hain aur manzil bhi….Sangsar mein itni chana chanda hain ki hum kho hi jaenge.

    Naam jap.karte.rahiye aur brahmacharya par laage rahiye

     

    Hare Krishna

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Vishnu Gupta
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Vishnu GuptaYogi
Asked: January 3, 2025In: ब्रह्मचर्य का परिचय

ब्रह्मचर्य नो फैप से किस प्रकार अलग है?, क्या नो फैप ही ब्रह्मचर्य है?, अगर नहीं तो किस प्रकार अलग है?, बताइये।।

  • 2

  1. Manish
    Manish Vidyarthi (Scholar)
    Added an answer on January 3, 2025 at 3:22 pm

    नो फैप का अर्थ केवल जनेंद्री के नियंत्रण से है तथा अश्लील चलचित्रों के नियंत्रण से है। लेकिन ब्रह्मचर्य का अर्थ का केवल जनेंद्री के नियंत्रण से ही नहीं है इसके अलावा भी बहुत सी चीजें हैं जो ब्रह्मचर्य में आती है । ब्रह्मचर्य से आध्यात्मिक ज्ञान व शारीरिक के साथ साथ मानसिक ऊर्जा भी बढ़ती है, लेकिन नोRead more

    नो फैप का अर्थ केवल जनेंद्री के नियंत्रण से है तथा अश्लील चलचित्रों के नियंत्रण से है।

    लेकिन ब्रह्मचर्य का अर्थ का केवल जनेंद्री के नियंत्रण से ही नहीं है इसके अलावा भी बहुत सी चीजें हैं जो ब्रह्मचर्य में आती है ।

    ब्रह्मचर्य से आध्यात्मिक ज्ञान व शारीरिक के साथ साथ मानसिक ऊर्जा भी बढ़ती है, लेकिन नो फैप में जरूरी नहीं कि इन सब चीजों का विकास हो ।

    मुझे नो फैप के बारे में जानकारी नहीं है अतः मैं यहीं पर अपने उत्तर को विराम देता हूं।

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Vishnu Gupta
  • 1
Vishnu GuptaYogi
Asked: January 2, 2025In: ब्रह्मचर्य का परिचय

ब्रह्मचर्य जीवन जीने की एक पद्धति है,कैसे ?,एक्सप्लेन करिये?

  • 1

  1. Vinay Gupta
    Vinay Gupta
    Added an answer on January 2, 2025 at 3:43 pm

    ब्रह्मचर्य जीवन जीने की एक पद्धति है जिसमें व्यक्ति अपने जीवन को आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों के अनुसार जीता है। इसके लिए इन्द्रियों का नियंत्रण, आहार-विहार का नियंत्रण, ध्यान और योग, और सेवा और परोपकार का पालन करना आवश्यक है।

    ब्रह्मचर्य जीवन जीने की एक पद्धति है जिसमें व्यक्ति अपने जीवन को आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों के अनुसार जीता है। इसके लिए इन्द्रियों का नियंत्रण, आहार-विहार का नियंत्रण, ध्यान और योग, और सेवा और परोपकार का पालन करना आवश्यक है।

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Vishnu Gupta
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Vishnu GuptaYogi
Asked: December 22, 2024In: ब्रह्मचर्य का पालन कैसे करें?

Brahmacharya Ko Follow Kaise Kare?

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  1. Vishnu Gupta
    Best Answer
    Vishnu Gupta Yogi
    Added an answer on December 22, 2024 at 11:17 am
    This answer was edited.

    ब्रह्मचर्य का संकल्प तो आज के समय में अधिकांश युवा करते हैं, लेकिन प्रश्न यह है कि कितने उस संकल्प को निभा पाते हैं। हमें अनेक प्रश्न प्राप्त होते हैं कि हम संकल्प करते हैं, लेकिन जैसे ही एक निश्चित समय अवधि पूरी होती है—चाहे वह दस दिन हो, पंद्रह दिन हो, एक महीना हो, दो महीने हो, या पाँच महीने—तो हमRead more

    ब्रह्मचर्य का संकल्प तो आज के समय में अधिकांश युवा करते हैं, लेकिन प्रश्न यह है कि कितने उस संकल्प को निभा पाते हैं। हमें अनेक प्रश्न प्राप्त होते हैं कि हम संकल्प करते हैं, लेकिन जैसे ही एक निश्चित समय अवधि पूरी होती है—चाहे वह दस दिन हो, पंद्रह दिन हो, एक महीना हो, दो महीने हो, या पाँच महीने—तो हमारी मन:स्थिति में फिर से वही विचार, वही चीजें चलनी शुरू हो जाती हैं।

    हम ऐसा अनुभव करते हैं जैसे हम इन स्थितियों के दास हैं। यह वास्तविकता है कि जब व्यक्ति मानसिक कैद में होता है, तो वह अपनी आदतों और अपनी लत का गुलाम हो जाता है। उसकी स्थिति ऐसी ही होगी, जैसे एक व्यक्ति जेल में बंद होता है। वह जो भी व्यवहार करता है, उसे चारदीवारी के अंदर करता है।

    लेकिन अगर उसके मन में यह इच्छा जागे कि वह इस चारदीवारी से बाहर जाए, तो उसके लिए यह संभव नहीं होता, क्योंकि उसके मार्ग में बहुत सारे अवरोध होते हैं।

    अनुशासन ही आधार है

    यदि उसे कैद से समय से पहले बाहर जाना है, तो उसके पास एक ही अवसर होता है और वह है अनुशासन। अगर वह अनुशासित रहता है, तो उसकी कैद की सीमा कम कर दी जाती है और वह समय से पहले ही वहां से बाहर आ सकता है।

    इसी प्रकार, जो व्यक्ति मानसिक विचारों की स्थितियों का कैदी हो गया है, लतों में फंस गया है, और ब्रह्मचर्य में स्थित नहीं हो पा रहा है, तो उसके जीवन में अनुशासन के बिना यह बात पक्की समझ लें कि इन स्थितियों से उसका बाहर आ पाना असंभव हो जाएगा।

    यदि हमारा प्रत्येक नवयुवक इन मानसिक स्थितियों से उबर पाए और इस जाल से बाहर निकल पाए, तो वह मानसिक स्तर पर स्वतंत्र हो सकता है। मानसिक स्वतंत्रता प्राप्त कर लेने के बाद वह अपने जीवन के प्रत्येक पक्ष को नियंत्रित कर सकता है और उसे अपने अनुसार संचालित कर सकता है।

    क्यों करना है ब्रह्मचर्य?

    दूसरे स्तर पर हमारा उद्देश्य है कि आप अपनी संस्कृति की चीजों को, सिद्धांतों को अपने जीवन में लेकर आएं। अगर ऐसा करते हैं, तो आप निश्चित रूप से इस संकल्पना को पूरा कर सकते हैं। हमने अनुभव किया है कि हमें जो बाधा होती है ब्रह्मचर्य के संकल्प में, वह लगभग बीस दिन और इक्कीस दिन का समय है।

    पंद्रह दिन बीस दिन तक तो हम स्थिर रह पाते हैं, लेकिन ये जो दो-तीन दिन आगे के होते हैं, ये बड़े कठिन होते हैं। इसमें हम स्थिर नहीं रह पाते। इसका कारण क्या है? इसे हम समझते हैं कि ऐसा क्यों होता है। इसे आप एक उदाहरण से समझें। जैसे एक किसान होता है, वह किसान जब अपने खेत में पानी चलाता है,

    तो उससे पहले वह एक चीज जरूर करता है कि जो मेड होती है, जो घेराव होता है उसके खेत का, उस मेड को वह ठीक प्रकार से जांच लेता है कि वह ठीक तो है, कमजोर तो नहीं है, कहीं से टूटी हुई तो नहीं है। एक बार जांच जरूर कर लेता है। फिर उसके बाद वह खेत में पानी शुरू कर देता है। और जब पानी शुरू हो जाता है, तब भी वह ऐसी लापरवाही नहीं करता कि फिर वह जाकर के देखे ही नहीं। वह बीच में भी जाता है और मेड के चारों ओर चक्कर लगाता रहता है कि कहीं से कोई रिसाव तो नहीं है, कहीं से कोई कटाव तो नहीं है, कहीं पानी बाहर तो नहीं निकल रहा है।

    और यह जरूरी है। पहले निरीक्षण करता है, बीच में भी निरीक्षण करता है और जब तक वह यह आश्वस्त नहीं हो जाता इस विषय में कि हां, अब सब जगह ठीक से पानी चल रहा है, बाहर नहीं निकल रहा है, तब तक वह उसकी जांच करता है।

    सतत निरीक्षण जरूरी है

    इसी प्रकार से प्रत्येक व्यक्ति को भी जरूरी है। जब कोई भी हमारा नवयुवक एक संकल्प करता है, तो उसे यह देखना होगा कि उसके उस संकल्प का आधार क्या है। अगर कोई मोटिवेशन मात्र आधार है या फिर ग्लानि आधार है, या आपने कुछ ऐसा किया और उसके बाद आपको लगा कि यह तो व्यर्थ है, मैं दोबारा ऐसा नहीं करूंगा और आपने कोई विचार नहीं किया, केवल भावनाएं आपके मन में कुछ चल रही हैं, तो बड़ा कठिन हो जाएगा

    आपके लिए ब्रह्मचर्य। अगर मोटिवेशन है कि कोई वीडियो आपने देख ली या किसी व्यक्ति ने कहा कि तुम मूर्ख हो, तुम्हारा जीवन नष्ट हो जाएगा, पतन हो जाएगा, तुम कहीं के नहीं रहोगे। फिर तुम मोटिवेट हो गए और आपने ब्रह्मचर्य का संकल्प किया, तो ब्रह्मचर्य का संकल्प दृढ़ नहीं हो पाएगा। अब करना क्या पड़ेगा? तो आपको भी निरीक्षण करना पड़ेगा।

    जैसे वह किसान उस क्यारी के चारों ओर घूमके पहले देखता है कि पानी ठीक से चल रहा है कि नहीं, कहीं मेड कमजोर तो नहीं है। इसी प्रकार से आपको भी अपनी स्थितियों को देखना पड़ेगा, अपने जीवन को देखना पड़ेगा। आपको अपना विश्लेषण, मूल्यांकन करना होगा कि मैंने अब तक क्या किया। क्या मेरे जीवन की दिशा ठीक है? मुझे किस प्रकार से इस दिशा को बेहतर बनाना है। और केवल ब्रह्मचर्य का संकल्प ही नहीं लेना, साथ ही साथ अपने जीवन को ऐसी दिशा भी देनी है, जिसमें कि आप अपना लक्ष्य रखते हैं।

    कोई व्यवसाय का संकल्प है, कोई आपका लक्ष्य है। जैसे राष्ट्र सेवा है, आध्यात्मिक प्रगति है, योगी प्रगति है। तो कोई भी एक ऐसा विषय जिसमें कि पूर्ण तन्मयता के साथ आप अपने आप को लगा के रखें, ऐसी स्थिति भी होनी चाहिए। जब आप देखते हैं और अपने जीवन का यह आधार बना लेते हैं कि मैं ब्रह्मचर्य का संकल्प इसलिए कर रहा हूं, उसके बाद इसकी बहुत अधिक संभावना है कि आप अब उसी स्थिति में दृढ़ स्थित हो पाएंगे।

    दूसरे स्थान पर जब आपने संकल्प कर लिया, तो उसके बाद भी अपने जीवन को देखते रहना है। उसके बाद भी सभी स्थितियों का मूल्यांकन करते रहना है। हमने देखा है कि बस संकल्प कर लिया कि मैं एक वर्ष का संकल्प करता हूं, लेकिन फिर कुछ ही दिनों बाद अनेक लोग यह कहने लग जाते हैं कि हम नहीं कर पाए, हम नहीं कर पाए। तो क्यों नहीं कर पाए? उसका कारण सीधा सा यह है कि आपने एक संकल्प करने के बाद सजगता नहीं रखी।

    जीवन की व्यवस्था और उन चीजों का मूल्यांकन नहीं किया कि क्या मेरे जीवन में मेरे रूटीन ठीक हैं? क्या मेरे जीवन का अनुशासन ठीक है? क्या मेरा आहार ठीक है? क्या मेरा दृष्टिकोण, विचार ठीक है? क्या मेरा संगठन ठीक है, जिन लोगों के साथ मैं रहता हूं? अगर इन चीजों पर आपने दृष्टि नहीं डाली, तो बड़ा कठिन हो जाएगा। तो कहने का मतलब है कि आपको संकल्प करने के बाद भी सजग रहना ही होगा। यह हमारा दूसरा बिंदु है।

    अपना लक्ष्य निर्धारित करें

    और तीसरे स्थान पर महत्वपूर्ण है कि जब एक किसान खेत में पानी ले जा रहा है, तो पानी कब बाहर आना शुरू होता है या मेड कब टूटनी शुरू होती है। जब पानी का स्तर कुछ बढ़ना शुरू हो जाता है, जब मेड के ऊपर दबाव आना शुरू हो जाता है, तभी वह टूट सकती है।

    इसी प्रकार से जो आपका यह प्रश्न रहता है कि हम संकल्प करते हैं लेकिन एक सीमा तक जाने के बाद वह संकल्प मजबूत नहीं रहता, हम भ्रमित होने शुरू हो जाते हैं। तो इसका कारण है कि यह एक ऊर्जा है। जब आप ब्रह्मचर्य करते हैं तो यह आपके पास रक्षित होनी, इकट्ठी होनी शुरू हो जाती है और जब इसका आंतरिक दबाव बनता है, तब उसको सहन करना, तब उसको व्यवस्थित रखना, संतुलित रखना यह एक चुनौती का विषय निश्चित रूप से होता है।

    तो आपकी जो यह ऊर्जा संग्रहित हो रही है, यह आपको प्रेरित करेगी ही। हमने पहले ही आपको कहा है कि आपको अपने लिए एक अच्छा, सकारात्मक लक्ष्य भी रखना है और पूर्ण उत्साहित रहना है उस लक्ष्य के प्रति। जब आप ऐसा करेंगे तो आपके पास अब कोई एक ऐसा विषय होगा, जिसमें आप इस ब्रह्मचर्य रूपी ऊर्जा का प्रयोग कर सकते हैं।

    क्योंकि निष्क्रिय व्यक्ति कभी भी ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकता। हमारे योगी, हमारे ऋषि, हमारे ब्रह्मचारी इसीलिए स्थित रह पाते थे क्योंकि उनके पास सार्थक लक्ष्य और अनुशासन बहुत पक्का होता था। जीवन में अगर अनुशासन है और सही दिशा में उस ऊर्जा का प्रयोग करने की क्षमता है, तो यह ऊर्जा आपके लिए बहुत अच्छे तरीके से, बहुत सर्जनात्मक कार्य कर सकती है।

    और अगर दिशा देने का मार्ग नहीं है, तो यह आपके लिए भारी भी बन सकती है, आपके लिए पतन का कारण भी बन सकती है। आप बार-बार भ्रष्ट होते रहेंगे, ग्लानि से भरते रहेंगे। तो आपके पास इसको दिशा देने का माध्यम भी होना चाहिए। इसीलिए हम कई बार आपको योग अभ्यास बताते हैं, कई बार ध्यान के अभ्यास बताते हैं, शांभवी आदि, त्राटक आदि दूसरे अभ्यास बताते हैं।

    क्योंकि जब तक आपके पास आपके जीवन में सार्थक चीज नहीं है, तब तक कठिनाई ही रहेगी।

    निष्कर्ष

    तो, हमने जो ये तीन चीजें आपको बताई हैं:

    पहली है संकल्प करने से पहले उस संकल्प का एक आधार बनाना।

    दूसरी है, संकल्प करने के बाद भी उस संकल्प का निरंतर निरीक्षण करते रहना, जीवन का निरंतर निरीक्षण करते रहना।

    तीसरी बात यह है कि जो हमारे बंधु कहते हैं कि हम बीस दिन, इक्कीस दिन ही चलता है। क्योंकि व्यक्ति को लगने लगता है जैसे पंद्रह दिन होते हैं या सोलह दिन होते हैं, तो उसे लगने लगता है कि अब तो काफी समय हो गया है। अब जैसे ही उसके मन में यह विकल्प बन जाता है कि काफी समय हो गया है, तो यहीं से उसका मन लापरवाही की स्थिति में चला जाता है और संकल्प पक्का नहीं रहता। फिर उसके लिए वे तीन, चार, पाँच दिन आगे बड़े मुश्किल हो जाते हैं और इक्कीस दिन में यह उसके लिए बड़ा भारी हो जाता है इतना निभा पाना।

    और वह भ्रष्ट हो जाता है। तो, इसी प्रकार आप इन स्थितियों को समझें। यह भी समझें कि जिस व्यक्ति को मन की सही समझ नहीं है, तो वह जीवन के किसी भी बिंदु पर सफल नहीं हो सकता। मन की समझ होना जरूरी है। जब आप दृढ़ रहेंगे, आप एकाग्र रहेंगे, तभी ठीक प्रकार से सभी अपने संकल्पों को पूरा कर पाएंगे।

    इसीलिए, हम बार-बार अपने साथियों को यौगिक मार्ग की एक जो प्रेरणा देते हैं, या फिर जो हमारे अध्यात्म और योग के अंतर्गत गूढ़ मनोविज्ञान के विषय में बातें कही गई हैं, उन्हें आप तक अग्रेषित करते हैं। जिससे कि आप उनसे सीख करके, उनका प्रयोग करके, मन, विचार और वृत्तियों के विषय में समझ रखें और उनसे सचेत रहें, सजग रहें।

    ।। राधे राधे ।।

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